Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : २९ :
पोतानी सूंढमां खीलेलां कमळ लावीने प्रभुना चरणो पासे चढावे छे! भगवानना
आश्चर्यकारक तपवडे ईन्द्रासन पण कंपी ऊठ्युं हतुं.
भगवान आवा तपमां लीन हता ते दरमियान कच्छ–महाकच्छ राजाना पुत्रो
नमि अने विनमि राजकुमारो आवीने भगवाननी सेवा करवा लाग्या ने प्रार्थना करवा
लाग्या के हे भगवान! आपे बधाने राज्य वहेंची आप्युं; पण अमने तो कांई न
आप्युं; अमने भूली गया; माटे अमने कांईक भोग–सामग्री आपो. अमारा उपर
प्रसन्न थाओ...आम वारंवार भगवानना पग पकडीने प्रार्थना करवा लाग्या ने तेमना
ध्यानमां विघ्न करवा लाग्या.
त्यारे पोतानुं आसन कंपायमान थवाथी अवधिज्ञानवडे धरणेन्द्रे ते वात जाणी
ने तरत भगवान पासे आवीने प्रथम भक्तिपूर्वक पूजा करी, पछी वेश बदलावीने
नमि–विनमिकुमारोने समजाव्या के अरे कुमारो! आ भगवान तो भोगोथी अत्यंत
निस्पृह छे, ने तमे तेमनी पासेथी भोगोनी याचना केम करी रह्या छो? तमारे
भोगसामग्री जोईए तो राजा भरत पासे जईने मांगो ने! भगवान तो बधुं छोडीने
मोक्षनो उद्यम करी रह्या छे तमने भोग–सामग्री क्यांथी देशे? –माटे तमे भरत पासे
जाओ.
ए सांभळीने बंने कुमारो कहे छे के हे महानुभाव! आप अहींथी चुपचाप
चाल्या जाओ; अमारा कार्यमां तमारी सलाहनी जरूर नथी. जोके आप शान्त–सौम्य–
तेजस्वीने बुद्धिमान छो, आप कोई भद्रपरिणामी महापुरुष लागो छो, छतां अमारा
कार्यमां केम वच्चे आवो छो–ते अमे जाणता नथी. अमे तो भगवानने ज प्रसन्न करवा
मांगीए छीए. भगवान भले वनमां रह्या, तेथी शुं तेमनी प्रभुता मटी गई?
भगवानने छोडीने भरत पासे जवानुं आप कहो छो ते ठीक नथी. महासमुद्रने छोडीने
खाबोचिया पासे कोण जाय? भरतमां अने भगवान ऋषभदेवमां मोटुं अंतर छे ते शुं
तमे नथी जाणता?
भगवान ऋषभदेव प्रत्ये अत्यंत भक्तिभरेलां तेमनां आवा वचनो सांभळीने
धरणेन्द्र प्रसन्न थया ने प्रगट थईने कहेवा लाग्या के हे कुमारो! हुं धरणेन्द्र छुं ने
भगवाननो सेवक छुं. भगवाने मने आज्ञा करी छे के ‘आ कुमारो महान भक्त छे माटे
तेमने तेमनी ईच्छा प्रमाणे राजसामग्री आपो.’ –माटे हे कुमारो! चालो, हुं भगवाने
बतावेली राजसंपदा तमने आपुं.