Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९३
धरणेन्द्रनी ए वात सांभळी बंने कुमारो प्रसन्न थया, तेमने लाग्युं के खरेखर
गुरुदेव अमारा पर प्रसन्न थया छे. भगवानने नमस्कार करीने तेओ धरणेन्द्र साथे
चाल्या. धरणेन्द्र तेमने पोताना विमानमां बेसाडीने विजयार्द्ध पर्वत पर लई गया.
आ विजयार्द्ध पर्वत भरतक्षेत्रनी वच्चे आवेलो छे ने तेना पूर्व–पश्चिय छेडा
लवणसमुद्रने स्पर्शे छे. आ शाश्वतपर्वतनी शोभा अद्भुत छे; हिमवन पर्वतना
पद्मसरोवरमांथी नीकळेली गंगा अने सिन्धु नदी आ पर्वतनी नीचे थईने वहे छे.
पर्वत उपर नव शिखरो जिनमंदिरथी शोभी रह्या छे. अहीं रोग के दुष्काळ वगेरे बाधा
होती नथी. आ महा भरतक्षेत्रमां मनुष्योनी स्थिति चोथा काळ जेवी होय छे,
(आर्यखंडनी माफक छ प्रकारे काळपरिवर्तन अहीं थतुं नथी.) जघन्यआयु १०० वर्षनुं
होय छे. अहींना विद्याधर मनुष्योने महाविद्याओ वडे ईच्छित फळ मळे छे. अनाज
वाव्या वगर ऊगे छे; नदीओनी रेती रत्नमय छे. उत्तर श्रेणीमां ६० नगर छे ने दक्षिण
श्रेणीमां प० नगर छे. विद्युतप्रभ, श्रीहर्म्य, शत्रुंजय, गगननन्दन, अशोका, अलका,
कुंदनगर, गंधर्वपुर, गिरिशिखर, महेन्द्रपुर, वगेरे उत्तर श्रेणीनी ६० नगरीओ छे, तथा
पुंडरीक, श्रीप्रभ, श्रीधर, रथनूपुर–चक्रवाल, संजयन्ती, विजया, क्षेमंकर, सूर्याभ, वगेरे
दक्षिण श्रेणीनी प० नगरीओ छे; तेमां रथनूपुर राजधानी छे. दरेक नगरीमां एक हजार
मोटा चोक ने १२००० गली छे, रत्नोना तोरणथी शोभता एक हजार दरवाजा छे. दरेक
नगरीना पेटामां एकेक करोड गाम छे. त्यां रहेनारा विद्याधरो देव जेवा सुखी छे. आ
पर्वत पर करोडो सिंह, मृग ने चमरी गायो रहे छे; चारणऋद्धिधारी मुनिओ पण अहीं
विचरे छे.
आवा विजयार्द्ध पर्वतने देखीने नमि अने विनमि बंने राजकुमारो खुशी थया.
रथनूपुर–चक्रवाल नगरीमां प्रवेश करीने धरणेन्द्रे ते बंनेनो राज्याभिषेक कर्यो; नमिने
दक्षिण श्रेणीनुं अने विनमिने उत्तर श्रेणीनुं राज्य सोंप्युं; तथा त्यांना विद्याधरोने
भलामण करी के भगवान ऋषभदेवे आ बंनेने अहीं मोकल्या छे, ते तमारा स्वामी छे,
माटे तेमनी आज्ञा मानवी. पछी बंने राजकुमारोने विद्या आपीने धरणेन्द्र पोताना
स्थाने चाल्या गया.
जोके आ बंने कुमारो जन्मथी विद्याधर न हता पण पुण्ययोगे विद्याधरोना
देशमां जईने तेमणे अनेक विद्याओ सिद्ध करी; तथा विद्याधरो तेमनी सेवा करवा
लाग्या. यथार्थमां तो मनुष्यनुं पुण्य ज तेने सुख–सामग्री मेळवी आपे छे. जगतगुरु
भगवान