चाल्या. धरणेन्द्र तेमने पोताना विमानमां बेसाडीने विजयार्द्ध पर्वत पर लई गया.
पद्मसरोवरमांथी नीकळेली गंगा अने सिन्धु नदी आ पर्वतनी नीचे थईने वहे छे.
पर्वत उपर नव शिखरो जिनमंदिरथी शोभी रह्या छे. अहीं रोग के दुष्काळ वगेरे बाधा
होती नथी. आ महा भरतक्षेत्रमां मनुष्योनी स्थिति चोथा काळ जेवी होय छे,
(आर्यखंडनी माफक छ प्रकारे काळपरिवर्तन अहीं थतुं नथी.) जघन्यआयु १०० वर्षनुं
होय छे. अहींना विद्याधर मनुष्योने महाविद्याओ वडे ईच्छित फळ मळे छे. अनाज
वाव्या वगर ऊगे छे; नदीओनी रेती रत्नमय छे. उत्तर श्रेणीमां ६० नगर छे ने दक्षिण
श्रेणीमां प० नगर छे. विद्युतप्रभ, श्रीहर्म्य, शत्रुंजय, गगननन्दन, अशोका, अलका,
पुंडरीक, श्रीप्रभ, श्रीधर, रथनूपुर–चक्रवाल, संजयन्ती, विजया, क्षेमंकर, सूर्याभ, वगेरे
दक्षिण श्रेणीनी प० नगरीओ छे; तेमां रथनूपुर राजधानी छे. दरेक नगरीमां एक हजार
मोटा चोक ने १२००० गली छे, रत्नोना तोरणथी शोभता एक हजार दरवाजा छे. दरेक
नगरीना पेटामां एकेक करोड गाम छे. त्यां रहेनारा विद्याधरो देव जेवा सुखी छे. आ
पर्वत पर करोडो सिंह, मृग ने चमरी गायो रहे छे; चारणऋद्धिधारी मुनिओ पण अहीं
विचरे छे.
दक्षिण श्रेणीनुं अने विनमिने उत्तर श्रेणीनुं राज्य सोंप्युं; तथा त्यांना विद्याधरोने
भलामण करी के भगवान ऋषभदेवे आ बंनेने अहीं मोकल्या छे, ते तमारा स्वामी छे,
स्थाने चाल्या गया.
लाग्या. यथार्थमां तो मनुष्यनुं पुण्य ज तेने सुख–सामग्री मेळवी आपे छे. जगतगुरु
भगवान