: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
ऋषभदेवना चरणो सेववाथी बंने कुमारो विद्याधरोनुं सुख पाम्या...माटे जे भव्य जीवो
मोक्षरूपी अविनाशी सुखने तथा जिनगुणोने प्राप्त करवा चाहता होय तेओ आदिगुरु
भगवान ऋषभदेवना चरणोमां मस्तक झुकावीने नमस्कार करो तथा भक्तिपूर्वक
तेमनी पूजा करो.
वर्षीतप बाद हस्तिनापुरीमां प्रथम पारणुं
अचिन्त्य महिमावंत भगवान ऋषभदेवने छ मासनो ध्यानयोग पूर्ण थयो.
त्यारे तेमणे विचार्युं के, मोटा मोटा वंशमां उत्पन्न थयेला आ नवदीक्षित साधुओने
मुनिमार्गनी आहारादि विधिनुं ज्ञान न होवाथी क्षुधावडे तेओ मार्गभ्रष्ट थई गया.
तेथी, मोक्षमार्ग शुं छे, सुखपूर्वक मोक्षनी सिद्धि केम थाय, ने शरीरनी स्थिति माटे
निर्दोष आहार लेवानी विधि शुं छे–ते प्रसिद्ध करवानी जरूर छे. –आम विचारी निर्दोष
आहारनी प्रवृत्ति अर्थे भगवान विहार करवा लाग्या.
भगवान ज्यां–ज्यां पधारता त्यांना लोको प्रसन्नताथी आश्चर्यचक्ति थईने
प्रणाम करता हता; ने पूछता हता के हे देव! कहो शुं आज्ञा छे? –जे काम माटे आप
पधार्या हो तेनी अमने आज्ञा फरमावो. केटलाक लोको हाथी, रथ, वस्त्राभूषण, रत्नो
तथा खावापीवानी सामग्री भगवानने अर्पण करवा माटे लावता हता, तो कोई
पोतानी युवान कन्या भगवानने परणाववा तैयार थया. अरेरे! आवी मूर्खताने
धिक्कार हो!
भगवान चुपचाप चाल्या जता हता. भगवान केम पधार्या छे ने शुं करवुं–ते
नहि समजवाथी लोको दिग्मूढ बनी गया हता. केटलाक लोको आंसुभीनी आंखे
भगवानना पगने वळगी पडतां हतां. –आ प्रमाणे अनेक नगरमां विहार करतां करतां
बीजा छ महिना वीती गया.
एक दिवसे भगवान कुरुदेशना हस्तिनापुर नगरमां आवी पहोंच्या. ते वखते
त्यांना राजा सोमप्रभ हता, ने तेमना नाना भाई श्रेयांसकुमार हता. आठमां भवमां
आहारदान वखते जे ‘श्रीमती’ हती, ने पूर्वभवमां वज्रनाभि चक्रवर्तीनो धनदेव
नामनो गृहपती–रत्न हतो, ते ज आ श्रेयांसकुमार छे. भगवान जे दिवसे
हस्तिनापुरनी नजीक पधारवाना हता ते दिवसे परोढिये, श्रेयांसकुमारे पूर्वसंस्कारना
बळे, मंगल आगाही सूचक सात उत्तम स्वप्नो देख्या–ऊंचो सुमेरूपर्वत, सुशोभित
कल्पवृक्ष, केशरी सिंह, बळद, सूर्य–चन्द्र, रत्नोथी भरेलो समुद्र अने अष्टमंगल सहित
देवो; भगवाननां दर्शन ए जेनुं मुख्य फळ छे–एवा आ सात मंगलस्वप्न देखीने
श्रेयांसकुमारनुं चित्त घणुं प्रसन्न थयुं.