Atmadharma magazine - Ank 282
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९३ आत्मधर्म : ३३ :
परम शांति दातारी
(अंक २८१ थी चालु) (लेखांक४८)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनांअध्यात्मभावना भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
अंतरात्माए देहथी भिन्न आत्मानी केवी भावना करवी ते हवे कहे छे–
तथैव भावयेद्रेहाद्व्यावृत्यात्मानमात्मनि ।
यथा न पुनरात्मानं देहे स्वप्नेपि योजयेत्।। ८२ ।।
आत्मामां अंतर्मुख थईने देहथी भिन्न आत्माने एवो भाववो के जेथी फरीने
देहनी साथे स्वप्ने पण आत्मानो संबंध न थाय. धर्मी पोताना आत्माने देहादिथी
भिन्न एवो भावे छे के तेने स्वप्नां पण एवा ज आवे, स्वप्नामां पण देह साथे
एकता न भासे. हुं देहथी जुदो चैतन्यबिंब थईने अनंत सिद्ध भगवंतोनी वच्चे बेठो
छुं–एवा स्वप्नां धर्मीने आवे. वाणीथी के विकल्पथी भावना करवानी आ वात नथी,
आ तो अंतरमां आत्मामां एकाग्र थईने भावना करवानी वात छे. देहथी भिन्न कहेतां
रागादिथी पण आत्मा भिन्न छे, तेनी भावना भाववी. समयसारमां आचार्यदेवे
एकत्व–विभक्त आत्माने जेवो वर्णव्यो छे तेनी ज भावना करवानी आ वात छे. –कई
रीते? के पोते एवा आत्मानो स्वानुभव करीने तेनी भावना करवी. मूढबुद्धि जीवो
शरीरने धर्मनुं साधन माने छे एटले ते तो शरीरथी भिन्न आत्माने क्यांथी भावे?
ज्ञानी तो जाणे छे के मारो आत्मा देहथी अत्यंत भिन्न छे, ‘आ देह हुं छुं’ एवी
एकत्वबुद्धि स्वप्ने पण तेने नथी, एटले स्वप्ने पण आत्माने देह साथे जोडता नथी,
आत्मामां ज श्रद्धा–ज्ञाननुं जोडाण करीने तेनी भावना करे छे. –भेदज्ञानथी निरंतर
आवी भावना करवी ते ज मोक्षनुं कारण छे.
।। ८२।।
८२ मी गाथामां एम कह्युं के आत्मभावना ज मोक्षनुं कारण छे, व्रतनो
शुभराग पण मोक्षनुं कारण नथी; माटे मोक्षार्थीए अव्रतनी माफक व्रतनो पण विकल्प
त्याज्य