तेमां परम अतीन्द्रिय आनंदनो एवो अनुभव थशे, के ईन्द्रना वैभव पण तने सडेला
तरणां जेवा लागशे. शुभ के अशुभ रागरूप आस्रवो छे ते अध्रुव छे, दुःखरूप छे;
एनाथी पण भिन्न चिदानंदस्वभावी आत्मा ध्रुव छे, ने दुःखनुं ते अकारण छे, तेनो
अनुभव आनंदरूप छे. आम आत्मा अने आस्रवनी भिन्नता जाणतां ज्ञान आस्रवोथी
जीवो मोक्ष पाम्या छे. तेओ ज्यांथी मोक्ष पाम्या तेने सिद्धक्षेत्ररूप तीर्थ कहेवाय छे.
ने आत्मानी शुद्धता थतां मोक्ष पण आत्मामां ज प्रगट्यो. एवी मोक्षदशा केम पमाय
तेना स्मरण माटे तीर्थयात्रा छे, ते अशरीरी पूर्ण आनंदमय परमात्मानुं स्वरूप शुं छे–
तेना स्मरण माटे तीर्थयात्रा छे, तेमने सादिअनंत आनंद प्रगट्यो ते क््यांथी प्रगट्यो?
आत्मानी शक्तिमां हतो ते आनंद प्रगट्यो. आवी प्रतीत अने ओळखाण वगर सिद्धनुं
साचुं स्मरण कोण करशे?
सम्यग्दर्शनादि क्रिया थती नथी. आत्मा पोते ज सम्यग्दर्शनादिनो आधार छे.–आवा
आत्मस्वरूपनो यथार्थ निर्णय करवो ते धर्मनुं पहेलुं पगथियुं छे.
संकल्पनी जरूर छे. तारो द्रढ संकल्प ए ज तारा कार्यने
साधवानुं मुख्य साधन छे.