Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
अरे जीव! आ चैतन्यरसनुं पान कर ते चैतन्यरसनी खुमारी पासे बीजा
कोईनी आशा रहेशे नहि. माटे कहे छे के:–
आतम! अनुभव रस पीजे...आशा औरनकी कया कीजे?
चैतन्यनो रंग जेने चड्यो तेने परपदनी प्रीति रहे नहीं. स्वपदने भूलीने
अज्ञानी परपदमां राची रह्यो छे. भाई! तारा स्वतत्त्वमां एकवार तो द्रष्टि लगाव...
तेमां परम अतीन्द्रिय आनंदनो एवो अनुभव थशे, के ईन्द्रना वैभव पण तने सडेला
तरणां जेवा लागशे. शुभ के अशुभ रागरूप आस्रवो छे ते अध्रुव छे, दुःखरूप छे;
एनाथी पण भिन्न चिदानंदस्वभावी आत्मा ध्रुव छे, ने दुःखनुं ते अकारण छे, तेनो
अनुभव आनंदरूप छे. आम आत्मा अने आस्रवनी भिन्नता जाणतां ज्ञान आस्रवोथी
जुदुं परिणमे छे, एटले के संवर थाय छे. आ रीते भेदज्ञान द्वारा संवर करीने अनंता
जीवो मोक्ष पाम्या छे. तेओ ज्यांथी मोक्ष पाम्या तेने सिद्धक्षेत्ररूप तीर्थ कहेवाय छे.
हमणां सम्मेदशिखरजी तीर्थनी यात्राए गया हता, त्यांथी अनंता जीवो मुक्त
थया छे ने उपर सिद्धपणे बिराजे छे. आत्मानो संसार आत्माना विकारभावमां हतो,
ने आत्मानी शुद्धता थतां मोक्ष पण आत्मामां ज प्रगट्यो. एवी मोक्षदशा केम पमाय
तेना स्मरण माटे तीर्थयात्रा छे, ते अशरीरी पूर्ण आनंदमय परमात्मानुं स्वरूप शुं छे–
तेना स्मरण माटे तीर्थयात्रा छे, तेमने सादिअनंत आनंद प्रगट्यो ते क््यांथी प्रगट्यो?
आत्मानी शक्तिमां हतो ते आनंद प्रगट्यो. आवी प्रतीत अने ओळखाण वगर सिद्धनुं
साचुं स्मरण कोण करशे?
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के आत्मा शुद्ध ज्ञानस्वरूप छे; रागादि
परिणाम के देहादिनी क्रिया ते आत्मानुं कार्य नथी, ने तेना आधारे आत्मानी
सम्यग्दर्शनादि क्रिया थती नथी. आत्मा पोते ज सम्यग्दर्शनादिनो आधार छे.–आवा
आत्मस्वरूपनो यथार्थ निर्णय करवो ते धर्मनुं पहेलुं पगथियुं छे.
द्रढता
तारुं कार्य साधवा माटे बहारनी साधन–
सम्पत्तिनी एवी जरूर नथी के जेटली तारा द्रढ
संकल्पनी जरूर छे. तारो द्रढ संकल्प ए ज तारा कार्यने
साधवानुं मुख्य साधन छे.