Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९३ आत्मधर्म : २प :
जन्मोत्सवना ७८ पुष्पो
(पृष्ठ ८ थी चालु)
(३प) रागने जाणती वखते ज्ञानीनो आत्मा रागरूपे नथी परिणमतो पण
रागना ज्ञानरूपे ज परिणमे छे.–आ रीते ज्ञानरूपे परिणमता आत्माने
जाणवो ते कल्याणनो मार्ग छे.
(३६) भाई, आत्माने जे दुःख अने परिभ्रमण छे ते केम टळे? ने सुख केम
प्रगटे तेनी आ वात छे. शुभराग ते कांई सुखरूप नथी; सुख तो
निराकुळ, राग वगरनुं छे.
(३७) रागमां जेने मीठास लागे छे ते दुःखमां पडेला छे. ज्ञानस्वरूप आत्मा ज
आनंदनो सागर छे–एनुं भान करीने अनुभव करतां सुखनुं वेदन थाय
छे; ते धर्म छे.
(३८) ज्ञान अने रागनुं स्वरूप भिन्न छे. ज्ञानमां तो स्व–परने जाणवानी
ताकात छे, पण रागमां स्व–परने जाणवानी ताकात नथी; तेथी ज्ञान तो
प्रकाशरूप छे, चेतनरूप छे, ने राग तो अंधकाररूप छे, अचेतन छे.–आम
बंनेनी भिन्नता ओळखवी ते दुःखथी छूटवानो उपाय छे.
(३९) जगतमां मणि–रत्नो मळवा मोंघा नथी, पण आत्माना धर्मनुं श्रवण
मळवुं महा मोंघुं छे. ते श्रवण करीने पण चैतन्यस्वरूपने लक्षगत करवुं ते
तो अपूर्व छे.
(४०) राग दुःखनुं कारण छे, आत्मानो ज्ञानस्वभाव दुःखनुं कारण नथी, ए तो
आनंदनुं धाम छे.
(४१) आत्मानुं स्वरूप मारे समजवुं छे एम जो अंतरमां गरज करीने समजवा
मांगे तो जरूर समजाय तेवुं छे.
(४२) जीवने प्रतिकूळ संयोगोनुं दुःख नथी; दुःखनुं कारण संयोगो नथी, तेमज
आत्मानो स्वभाव पण दुःखनुं कारण नथी. दुःखनुं कारण तो चैतन्यथी
विरुद्ध एवा क्रोधादिभावो ज छे.
(४३) रागादि भावोने कारण बनावीने आत्मा पोताना सम्यग्दर्शनादि कार्यने
करे–एवुं नथी. तेमज आत्मा कारण थईने रागादि कार्यने करे–एम पण
नथी. आ रीते रागादि साथे खरेखर आत्माने कारण–कार्यपणुं नथी.