Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 45

background image
: २६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
(४४) राग अने ज्ञाननी भिन्नतानुं ज्यां भेदज्ञान थयुं एटले के अंतर्मुख थईने
ज्ञाननो अनुभव थयो त्यां राग साथे एकताबुद्धि रहेती नथी, एटले तेने
बंधन थतुं नथी, ते आत्मा बंधनथी छूटे छे.
(४प) भाई, चोराशीना भवभ्रमणमांथी छूटवानो राह सन्तो तने बतावे छे.
तारो आत्मा अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप छे, तेनो विश्वास करवो ते दुःखथी
छूटवानो उपाय छे.
(४६) दुःखने उपजावनार कोण छे? राग साथेनी एकत्वबुद्धि ज दुःखने
उपजावनारी छे; ने ज्ञानस्वभावमां एकत्वबुद्धि ते आनंदने उपजावनार
छे.
(४७) भाई, अंदरमां आनंदथी भरेलुं चैतन्यतत्त्व छे, तेमां ऊंडे ऊतरवा जेवुं
छे. ज्यां सुख भर्युं छे तेमां ऊंडो ऊतरे तो सुख मळे.
(४८) रागादि भावो पोते दुःखरूप छे, ते सुखनुं कारण केम थाय? आत्माना
स्वभावने राग साथे कारणकार्यपणुं नथी.
(४९) देहनी क्रियाओ कारण ने आत्मानुं सम्यग्दर्शन कार्य एम नथी; तेमज
रागनी क्रिया ते कारण ने आत्मानुं सम्यग्दर्शनादि ते कार्य–एवुं पण नथी.
(प०) ए ज रीते, आत्मा कारण थईने रागादि कार्यने करे एम नथी, तेमज
आत्मा कारण थईने देहादिनी क्रियाने करे एम पण नथी.
(प१) आत्माना आवा अकारण–कार्य स्वभावनुं विवेचन सम्मेदशिखरजी
तीर्थनी छायामां बे दिवस चाल्युं हतुं. ए तो भगवानना मोक्षनुं धाम,
त्यां अनंता सिद्ध भगवंतो उपर बिराजी रह्या छे. तेओ कई रीते मोक्ष
पाम्या–तेनी आ वात छे.
(प२) सर्वज्ञदेवे संक्षेपमां मोक्षनो मार्ग एम समजाव्यो छे के तारा
ज्ञानस्वभावनुं वेदन ते ज मोक्षनुं कारण छे, ने रागनुं वेदन ते मोक्षनुं
कारण नथी.
(प३) जेम आत्माना स्वभावने रागादि साथे अकारण–कार्यपणुं छे, तेम
आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–सुख वगेरे समस्त गुणोने पण रागादि साथे
अकारण–कार्यपणुं छे.
(प४) जेमके–आत्मानी श्रद्धापर्याय;–राग छे माटे ते श्रद्धा प्रगटी–एम नथी.
अने ते श्रद्धापर्याय रागनी कर्ता पण नथी. आम आत्माना दरेक गुणनी