: वैशाख : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
निर्मळपर्यायने रागथी भिन्नता छे एटले तेनी साथे कारण–कार्यपणानो
संबंध आत्माने नथी.
(पप) परने कारणे तो श्रद्धा वगेरे नहि, ने शुभरागने कारणे पण श्रद्धा वगेरे
नथी. माटे हे भाई! सम्यग्दर्शनादि माटे तुं तारा स्वभावमां जो; अने
तारा गुण–पर्यायोने रागादिथी भिन्न देख.
(प६) श्रद्धागुणमां एवो स्वभाव नथी के पोताना कार्यमां रागने कारण बनावे.
पोते पोताना स्वभावथी ज सम्यग्दर्शनादि कार्यरूपे परिणमे छे.
(प७) पहेलां ज्ञानना बळथी आवा स्वभावनो निर्णय करवो जोईए. निर्णय
साचो होय तो अनुभव साचो थाय, ने सम्यग्दर्शनादि थाय.
(प८) आत्मा केवो छे, ने केम प्रगटे–तेना निर्णय वगर शेमां लीन थशे? रागने
आत्मानुं स्वरूप माने तो ते लीनता पण रागमां ज करशे.–तेने वीतरागी
चारित्र के मोक्षमार्ग क््यांथी थाशे?
(प९) ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानो जेणे निर्णय कर्यो ने रागादि परभावो
साथेनो संबंध तोडयो तेने ज्ञानस्वरूपमां लीनता वडे वीतरागी
चारित्र ने मोक्षमार्ग प्रगट थाय छे.–आवो मोक्षमार्ग भगवाने कह्यो
छे. आ मोक्षमार्गमां बीजुं कोई कारण नथी.
(६०) भाई, आ देहनो ने जीवनो भरोसो शो? तारुं तो ज्ञान छे. ज्ञानस्वरूप
आत्माना स्मरणथी पण शांति मळे छे, तो तेना साक्षात् अनुभवना
आनंदनी शी वात?
(६१) रागथी जे ज्ञान जुदुं नथी परिणमतुं रागमां तन्मय वर्ते छे, तेने खरेखर
ज्ञान कहेता नथी, ते तो अज्ञान ज छे. ज्ञान तो तेने कहेवाय के रागनुं
अकर्ता थईने रागथी जुदुं परिणमे.
(६२) राग तो पोते ‘अज्ञानमय भाव’ छे, तेनी साथे एकमेक वर्ते तेने
ज्ञान कोण कहे? अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभाव साथे एकता करी त्यारे
ज्ञान ज्ञानरूपे परिणम्युं, ने आस्रवोथी छूटयुं.–आवुं भेदज्ञान ते
बंधथी छूटवानुं ने मोक्षनी प्राप्तिनुं साधन छे.