Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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स्वागतम्............अभिनन्दनम्
अनेक स्थळे भगवान जिनेन्द्रदेवनी प्रतिष्ठा करीने, अने
सिद्धिधाम सम्मेदशिखरजी वगेरे तीर्थोनी यात्रा करीने पुन:
सौराष्ट्रभूमिमां पधारता पू. गुरुदेवनुं स्वागत करीए छीए...अने
बोटाद शहेरमां जेमनो ७८मो मंगल जन्मोत्सव उजवायो एवा
गुरुदेवने हृदयना उमंगथी अभिनंदीए छीए.
हे गुरुदेव! आपनी शीतळ छत्रछायामां जे वीतरागी शांति
वर्ते छे ने अध्यात्मरसभीनुं जे वैराग्यमय वातावरण वर्ते छे तेनी
हवा चाखनार मुमुक्षुजीवोने सहेजे आत्महितनी स्फूरणा जागे छे,
आत्महित सिवायना अन्य कार्योमांथी तेनो रस ऊडी जाय छे.
अतिशय रसपूर्वक जे आत्मतत्त्वनो महिमा आप संभळावो छो ते
आत्मतत्त्वनी प्राप्ति माटे अमारा जेवा अनेक बाळको आपना
चरणोमां जीवन वीतावी रह्या छे. आप जे परम तत्त्व बतावी रह्या
छो तेने अत्यंत उद्यमपूर्वक उपासीए अने आपनी मंगलछायामां
परम पदने पामीए एवी भावना साथे अत्यंत भक्तिपूर्वक आपनुं
स्वागत करीए छीए........अभिनंदन करीए छीए.
बोटाद: वैशाख सुद २ – संपादक