ते शिष्यनी जिज्ञासा सूचवे छे. मारो आत्मा अज्ञानभावे आस्रवोमां अटक्यो छे, ते
दुःख छे; तेमांथी आत्माने कई रीते छोडाववो? एवी अंतरनी जिज्ञासापूर्वक शिष्ये
छूटकारानो उपाय पूछयो छे. छूटवानी जेना अंतरमां धगश छे एवा शिष्यनो आ प्रश्न
छे. तेने आचार्यदेव आस्रवोथी छूटवानी रीत बतावे छे–
एमां रही स्थित, लीन एमां, शीघ्र आ सौ क्षय करुं.
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष आत्माने निर्णयमां लईने तेनो अनुभव करतां तत्क्षणे ज आत्मा
आस्रवोने छोडी दे छे. पहेलां अज्ञानपणे रागादि आस्रवोने पकडी राखतो, तेने बदले
हवे भगवान आत्मा ज्ञानसमुद्रमां एवो मग्न थयो के आस्रवोनी पकड छूटी गई; आनुं
नाम भेदज्ञान, ने आनुं नाम धर्म. प्रत्यक्षअनुभव माटेनो व्यवहार क््यो? के पहेलां
ज्ञानवडे आत्माना स्वभावनो निर्णय करवो. आवा निर्णयमां ज जो भूल होय तो
आत्मानो साचो अनुभव थाय नहि. रागने साधन बनावीने आत्मानो अनुभव
करवा मांगे तो थई शके नहि. आत्माना प्रत्यक्ष अनुभवमां वच्चे बीजुं साधन छे ज
आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव करवो, अने ते पहेलां तेनो निर्णय करवो–ते करवा जेवुं छे.
राग वखते कांई राग ते निर्णय करतो नथी, पण ते वखतनुं ज्ञान, पोतानी जाणवानी
शक्तिथी ते निर्णय करे छे. एटले ते निर्णयमां रागनुं कर्तृत्व नथी. ते ज्ञाननुं ज कार्य
छे. आवो निर्णय करवो ते प्रत्यक्ष अनुभव माटेनो उपोद्घात छे.