गुजरातमां पहेलुं प्रवचन बामणवाड गामे थयुं.
हजार उपरांत मुमुक्षुओ तेमज ग्राम्यजनो समक्ष
गुरुदेवे अत्यंत सरळ शैलीमां राजाना द्रष्टांते
आत्मानी सेवा करवानो उपदेश आप्यो.
ओळखीने निःशंकपणे तेनी सेवा करे छे ने राजा तेने धन आपे छे, तेम आ देहमां
रहेलो चैतन्यराजा, तेने ओळखीने, तेनी श्रद्धा करीने तेमां एकाग्रता द्वारा तेनी सेवा
करवी.–आ रीते आत्मानी सेवा करवाथी धर्म थाय छे ने साचुं सुख मळे छे.
अनंता अवतार कर्या; भले तने याद नथी पण तेथी कांई ते वातनुं अस्तित्व मटी न
जाय. आत्मा तो अनादिनो छे, ते कांई नवो थयो नथी, तेमज तेनो नाश थई जतो
नथी. ए तो छे...छे...ने छे...त्रिकाळी तत्त्व छे. अज्ञानभावे ते संसारमां रखडे छे. जो
आत्मानुं ज्ञान करीने मोक्ष पामे तो फरी तेने चार गतिमां अवतार रहे नहीं.
ते तारो दोष छे. देहादि परद्रव्य कांई तारां थई गया नथी; ए वस्तु तो जुदी छे.
पोतामां जे राग–द्वेष–मोहरूप मेल छे ते आत्मानी