Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९३ आत्मधर्म : २९ :
(७१) धर्म ए आनंदनी दशा छे, शांतिनी दशा छे; ते आनंद के शांति रागवडे
प्राप्त थई शके नहि; पण रागथी पार आत्मानुं स्वरूप छे तेना वेदन वडे
आनंद, शांति ने धर्म थाय छे.
(७२) अरे, आत्माना निर्णयमां पण जे सुख छे ते रागथी जुदी जातनुं छे.
आत्मानो निर्णय पण अनंतकाळमां जीवे कर्यो नथी. निर्णय करे तो ते
मार्गे अनुभव कर्या वगर रहे नहि.
(७३) वैशाख सुद बीजना प्रवचनमां गुरुदेव प्रसन्नताथी कहे छे के–जुओ भाई!
तत्त्व लक्षमां लेवुं जोईए. सुख तो आत्मतत्त्वमां छे, तेनी ओळखाण
वगर बहारनी बधी वृत्तिओ दुःखरूप छे. आत्माने लक्षगत करीने
स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष करवो ते सुखनो उपाय छे.
(७४) अंर्तस्वभावमां जवा माटे पहेलां तेनो सत्य निर्णय करवो जोईए; पछी
निर्णयना घोलनथी विकल्प तूटीने साक्षात् अनुभव थाय.
(७प) जेम प्रकाशमां अंधकार नथी, ने अंधकारमां प्रकाश नथी; तेम मोक्षना
कारणरूप जे धर्म, तेमां रागरूप अंधकार नथी ने रागादि अंधकारमां
धर्मनो प्रकाश नथी.–आम बराबर निर्णय करवो जोईए.
(७६) धर्मीजीव जाणे छे के हुं चैतन्यस्वरूपे सदाय उदयरूप छुं, जेमां विकार
प्रवेशी न शके एवो विज्ञानघन हुं छुं; आवो हुं मारा पोताना संवेदनथी
मने प्रत्यक्ष जाणुं छुं, एमां वच्चे कोई विकल्प नथी.
(७७) धर्मनी एटले के सम्यग्दर्शन थवानी आ रीत छे. आ रीते आत्मानो
अनुभव थाय छे.
(७८) आवा आत्मानो अनुभव करवो ते जीवननी सफळता छे.
आवुं अनुभव–जीवन जीवनारा
धर्मात्माओने नमस्कार हो.
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