बाह्यसामग्री शोधवी ते तो व्यग्रता छे, पराधीनता छे, दुःख छे.
नहि. आम पोताना सुखस्वभावने जाणीने तेनी सन्मुख परिणमतां जे सुख प्रगट्युं
तेमां दुःखनो अभाव छे. आवी दुःखना अभावरूप सुखदशा प्रगटे त्यारे आत्माना
सुखस्वभावने जाण्यो कहेवाय. स्वानुभूतिमां जे सुखनुं वेदन थयुं ते उपरथी धर्मी जीव
जाणे छे के मारो आखो आत्मा आवा पूर्ण सुखस्वभावथी भरेलो छे.–आम पर्यायमां
प्रसिद्धि सहित शक्तिनी प्रतीत साची थाय छे. शक्तिनी प्रतीत करे त्यां तेनुं फळ
पर्यायमां आव्या विना रहे नहि.
ज्ञान–सुख वगेरे गुणो व्यक्तपणे पर्यायमां व्यापे, एटले के निर्मळपणे परिणमे, त्यारे
अनंतशक्तिवाळा आत्माने जाण्यो–मान्यो–अनुभव्यो कहेवाय.
सुख गुणना कार्यमां दुःख न होय. सुखथी भरेला अंर्तस्वभावमां द्रष्टि करतां सुख
प्रगटे छे, दुःख नथी प्रगटतुं. अहा, आवा सुखस्वभावनी प्रतीत करतां ज तेमांथी
निराकुळ अचिंत्य आनंदनी कणिका प्रगटे छे, जेनो स्वाद सिद्धप्रभुना सुख जेवो ज छे.
–आवुं सुखशक्तिनुं कार्य छे.
साधन छे, बहारमां बीजुं कोई साधन नथी. भाई, अंतरमां नजर करीने आनंदने
शोध; बहारमां क््यांय न शोध.