नथी; एटले बाह्य वलणरूप आकुळतानो तेमां अभाव छे. सुख तेने कहेवाय के जेमां
अंशमात्र आकुळता न होय.
ने सुखनो अनुभव न थाय एम बने नहि. सुखना वेदनमां अनंत गुणोनो रस भेगो
छे; अनंत गुणनुं अनंत सुख छे.
चिन्ता केवी? परद्रव्य तो कांई आत्मामां आवतुं नथी ने आत्मा पोताना गुणथी बहार
परमां जतो नथी. आवा आत्माना चिन्तनथी परम आनंद प्रगटे छे. छद्मस्थदशामां
ज्ञानीने जे आनंद छे ते पण अनंत गुणना रसथी भरेलो अनंत आनंद छे; तो
सर्वज्ञना महा आनंदनी शी वात? पण पोताना आवा आनंदस्वभावने भूलीने परनी
चिन्तामां जीव वळग्यो छे तेथी दुःखी छे. स्वभावमां जुए तो एकलुं सुख, सुख ने सुख
ज भर्युं छे.
सुखनो मार्ग माने छे तेणे आत्माना सुखस्वभावने जाण्यो नथी. पुण्यना फळरूप जे
सुख छे ते ईन्द्रियजन्य सुख छे, ते कांई साचुं सुख नथी, पण ते तो दुःख ज छे–एम
प्रवचनसारमां सिद्ध कर्युं छे. राग तो पोते आकुळता छे एना वडे त्रणकाळमां सुख थाय
नहि. सुखगुणना परिणमनमां रागनो के आकुळतानो अभाव छे. एटले के
उदयभावनो अभाव छे. सुखशक्ति पारिणामिकभावे त्रिकाळ छे; तेनुं परिणमन
क्षायिकादि