Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
प्रश्न:– बहारमां तो बंगला–मोटर–रेडियो–सीनेमा वगेरे घणा प्रकारनां सुखनां
साधन देखाय छे ने?
उत्तर:– भाई, सुखनी गंध पण एमां नथी. एना तरफनुं वलण ते तो पाप
अने दुःख छे. सुखनो सागर आत्मामां भर्यो छे, तेने बहारना कोई साधननी जरूर
नथी; एटले बाह्य वलणरूप आकुळतानो तेमां अभाव छे. सुख तेने कहेवाय के जेमां
अंशमात्र आकुळता न होय.
आत्मानो सुखगुण श्रद्धा–ज्ञान वगेरे सर्वगुणोमां व्यापक छे, एटले श्रद्धान–
ज्ञान वगेरेना सम्यक् परिणमननी साथे सुख पण भेगुं ज छे. श्रद्धा–ज्ञान साचा थाय
ने सुखनो अनुभव न थाय एम बने नहि. सुखना वेदनमां अनंत गुणोनो रस भेगो
छे; अनंत गुणनुं अनंत सुख छे.
अहो, आवो सुखस्वभाव सांभळे, तेना विचार–मनन करे ने तेनो महिमा
लावी अंदर ऊतरे, तो त्यां जगतनी कोई चिन्ता के आकुळता क््यां छे? सुखमां बीजी
चिन्ता केवी? परद्रव्य तो कांई आत्मामां आवतुं नथी ने आत्मा पोताना गुणथी बहार
परमां जतो नथी. आवा आत्माना चिन्तनथी परम आनंद प्रगटे छे. छद्मस्थदशामां
ज्ञानीने जे आनंद छे ते पण अनंत गुणना रसथी भरेलो अनंत आनंद छे; तो
सर्वज्ञना महा आनंदनी शी वात? पण पोताना आवा आनंदस्वभावने भूलीने परनी
चिन्तामां जीव वळग्यो छे तेथी दुःखी छे. स्वभावमां जुए तो एकलुं सुख, सुख ने सुख
ज भर्युं छे.
आत्मामां जे सुख भर्युं छे ते प्रगट करवानो मार्ग सम्यग्दर्शन छे. सुखनो मार्ग
शुभरागमां नथी, सुखनो मार्ग तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे. जे रागमां के पुण्यमां
सुखनो मार्ग माने छे तेणे आत्माना सुखस्वभावने जाण्यो नथी. पुण्यना फळरूप जे
सुख छे ते ईन्द्रियजन्य सुख छे, ते कांई साचुं सुख नथी, पण ते तो दुःख ज छे–एम
प्रवचनसारमां सिद्ध कर्युं छे. राग तो पोते आकुळता छे एना वडे त्रणकाळमां सुख थाय
नहि. सुखगुणना परिणमनमां रागनो के आकुळतानो अभाव छे. एटले के
उदयभावनो अभाव छे. सुखशक्ति पारिणामिकभावे त्रिकाळ छे; तेनुं परिणमन
क्षायिकादि