Atmadharma magazine - Ank 283
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
ज्ञानमात्र आत्मामां सुखगुण स्वाधीन छे; ते सुखनी साथे बीजा अनंतगुणो
पण भेगा ज छे. अनंतगुणो एकसाथे आत्मामां होवा छतां, तेमां जे सुखगुण छे ते
अन्यगुण नथी, ने जे अन्यगुणो छे ते सुखगुण नथी.–एम बधा गुणो पोतपोताना
भिन्न भिन्न लक्षणने राखीने वस्तुमां रह्या छे. दरेक गुणमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवता अन्य
कारकोथी निरपेक्ष छे. सुखना उत्पाद–व्यय–ध्रुव त्रणे सुखरूप छे, ते त्रणेमां दुःखनो
अभाव छे. बीजी रीते कहीए तो निश्चयना शुद्धपरिणमनमां व्यवहारनी अशुद्धतानो
अभाव छे. अहीं तो शुद्धताने ज जीव कहीए छीए, अशुद्धताने खरेखर जीव कहेता
नथी.
अहो, ४७ शक्तिनुं वर्णन करीने तो आचार्यदेवे आत्माना स्वभावने प्रसिद्ध
कर्यो छे. आ ४७ शक्ति तो घातीकर्मनी ४७ प्रकृतिनो घात करीने केवळज्ञान प्रगट
करनारी छे. शक्तिना वर्णनमां शक्तिओ ४७, घातीकर्मोनी प्रकृति ४७, प्रवचनसारना
परिशिष्टमां नयो पण ४७ अने उपादान–निमित्तना दोहा पण ४७, एम बधामां ४७
नो मेळ आवी गयो छे. ज्ञानावरणनी पांच, दर्शनावरणनी नव, मोहनीयनी अठ्ठावीश
अने अंतरायनी पांच, (प+९+२८+प=४७) एम घातीकर्मोनी कुल ४७ प्रकृति छे;
तेनी सामे अहीं जे ४७ शक्तिनुं वर्णन कर्युं छे ते शक्तिवाळा आत्माने ओळखतां ४७
घातिप्रकृतिनो घात थई जाय छे, ने भगवान आत्मा पोतानी अनंत शक्तिनी
निर्मळपर्यायोसहित प्रसिद्ध थाय छे.
भाई, सुखनुं कारण तो ज्ञान छे. सुख आत्मामां छे तेनुं ज्ञान कर तो सुख
प्रगटे. ‘ज्ञान समान न आन जगतमें सुखको कारन.’ सम्यग्ज्ञान वडे आत्माने जाणतां
सुख थाय छे. अहो, आ शक्तिना अलौकिक वर्णनमां ज्ञानीनो अभिप्राय शुं छे ते
ओळखे तो आत्मानो अनुभव थया वगर रहे नहि. पोते अंदर ओळखे तो ज्ञानीनो
खरो आशय समजाय; ने समजण त्यां सुख होय ज.
जेम आत्मद्रव्य परनी अपेक्षा राखतुं नथी, तेम तेनी सुखशक्ति पण परनी
अपेक्षा राखती नथी अने तेनी सुखपर्याय पण परनी अपेक्षा राखती नथी. आ रीते
बधी शक्तिओमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेनुं परथी