: ४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९३
बोटाद शहेरना
प्रवचनोमांथी ७८ पुष्पो
श्री जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा अने
तीर्थयात्राना मंगलकार्यो करीने ७८मी
जन्मजयंतीना उत्सव प्रसंगे गुरुदेव बोटाद
पधार्या त्यां आठ दिवस रह्या, ने समयसार
कर्ताकर्म अधिकार उपर प्रवचनो थया. ते
प्रवचनोमांथी दोहन करीने ७८ पुष्पो अहीं
आपवामां आव्या छे. आ पुष्पोनी सौरभ
मुमुक्षुना चित्तने प्रसन्न करशे.
––ब्र. ह. जैन
(१) दरेक आत्मामां जीवत्व नामनी शक्ति छे; आत्मानुं भान करीने रागरहित
सर्वज्ञदशा प्रगटे, त्यां पोताना ज्ञान–आनंद वगेरे निर्मळ भावो सहित
आत्मा सादि–अनंत जीवन जीवे छे; ते मंगळ छे. सिद्धोनुं जीवन मंगळ
जीवन छे.
(२) सर्वज्ञस्वभावी आत्मा छे, अने तेनुं भान करतां सर्वज्ञदशा प्रगटे छे. एवा
सर्वज्ञ परमात्मा सीमंधरनाथ अत्यारे विदेहक्षेत्रमां बिराजी रह्या छे.
(३) ते सीमंधर परमात्मा साथे अमारे पूर्व भवमां संबंध हतो, ने अमारा
उपर तेमनो उपकार छे,–तेथी सोनगढमां तेमनी स्थापना करी छे.
(४) कुंदकुंदाचार्यदेव अहींथी बे हजार वर्ष पूर्वे सीमंधर परमात्मा पासे विदेहमां
पधार्या हता; ने ते वखते अमे (गुरुदेव तथा बहेनोना आत्मा) त्यां
मोजुद हता, ने कुंदकुंदाचार्यदेवने साक्षात् जोया छे.
(प) आ रीते सर्वज्ञ भगवान पासेथी जे वात कुंदकुंदाचार्यदेव लाव्या, ते ज वात
भगवाननी साक्षीए कहेवाय छे.