कर्ता ने राग तेनुं कार्य–एवी जे अज्ञानमय कर्ताकर्मनी बुद्धि छे. ते महा
दुःखनुं कारण छे. तेने संसार कहो, अधर्म कहो के पाप कहो. ते केम छूटे
तेनी आ वात छे.
छे त्यारे ते ज्ञानथी भिन्न एवा रागादि परभावने पोताना स्वरूपमां
जरापण भेळवतो नथी, पण ज्ञानस्वरूपे ज पोताने अनुभवे छे. एटले
ज्ञानमांथी रागादि परभावोनुं कर्तृत्व छूटी जाय छे, ने ज्ञानना अतीन्द्रिय
आनंदनो स्वाद आवे छे.–तेने धर्म कहो, मोक्षनो मार्ग कहो, के सुख कहो.
आत्माना आश्रये ज चैतन्यभाव (सम्यग्दर्शनादि) प्रगटे–एवुं कारण–
कार्यपणुं छे.
अस्तित्वनी खबर नथी, अनेकान्तनी खबर नथी.
जडनी क्रिया करवा मांडे तो आत्मा जडरूप जई जाय.–पण एम कदी
बनतुं नथी. जे जीव जडना के रागना कार्यने पोतानुं माने छे तेने जडथी
भिन्न ने रागथी भिन्न शुद्ध आत्मा अनुभवमां आवतो नथी, एटले के
धर्म थतो नथी.
केवळज्ञान–आनंद वगेरे अनंत रत्नो भरेला छे;–आवो चैतन्यरत्नाकर
आत्मा छे. तेनो अपार महिमा छे.