छे. ईन्द्रना बे सागरना आयुमां तो कोटि–लक्ष ईन्द्राणी थई जाय. पण ए ३२
लाख विमानोमां के ए ईन्द्राणीओमां क्यांय आत्माना सुखनो अंश पण नथी,
आत्मा पोतानी सुखपरिणतिनो खरो स्वामी छे. अनंत गुणपरिणतिनो स्वामी
आत्मा, तेमां द्रष्टि करतां पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंदनी उत्पत्ति थाय, ते
आनंदपरिणति सहित आत्मा शोभे छे. परिणतिनी स्थिति एकसमयनी,
परिणतिरूप ईन्द्राणी समये समये नवी नवी ऊपजे, ने आत्मारूपी ईन्द्र कायम
टकीने अतीन्द्रिय आनंदपरिणतिनो भोगवटो करे. एक परिणति जाय ने तत्क्षण
बीजी परिणति थाय–एम सदाकाळ आत्मा पोतानी सुखपरिणतिने अनुभव्या करे
छे. स्वसन्मुख परिणति आनंदपुत्रने जन्म आपे छे.
भगवाने एम कह्युं छे के तारा आत्मामां एक सुखधर्म छे, तेना शरणे तारुं सुख
प्रगटशे, बीजा कोईना शरणे तारुं सुख नहि प्रगटे.
एकसाथे रहेला छे, एवी आत्माना स्वभावनी अद्भुतता छे. आवा आत्माना
अनुभवनो रस ते ज परमार्थे अदभुत रस छे. आवो अनुभव विकल्प वडे न
थाय. विकल्पवडे जणाय एवो आत्मानो स्वभाव नथी; विकल्पथी पर एवा
स्वसंवेदनज्ञानथी आत्मा जणाय छे, ने ए रीते जाणतां परम सुख प्रगटे छे.
विकल्प वगर त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये एवी ताकात आत्मामां छे, ने एवा
आत्मानी अनुभूति पण विकल्प वगरनी छे. आत्मा पोताना अनंत गुणरूपी
स्व–घरमां स्थित रहीने निर्मळपरिणतिना आनंदने भोगवे छे. ब्रह्मस्वरूप
आत्माना आनंदने भोगवतो, धर्मी स्वगुणनी रक्षा करे छे, उपयोगना वेपारने
अंतरमां जोडे छे ने स्वभावनुं सेवन करीने अनंतगुणनो वैभव प्राप्त करे छे
एटले के पर्यायमां प्रगटपणे अनुभवे छे.