Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
जुओ भाई, आ तो अंतरमां बिराजमान चैतन्यराजाना वैभवनी वात
छे. दुनियामां राजा केवो ने तेनो वैभव केवो, क्यां लडाई थई ने कोण जीत्युं ए
बहारनुं जाणवानो जीवने केवो रस छे? पण अरे चेतनराज! तारो पोतानो
वैभव केवो अपार छे ते तो जाण! तेनी वात तो उत्साहथी सांभळ! जगतमां
सौथी मोटो महिमावंत चेतनराजा तुं छो, तारा अचिंत्य चैतन्यवैभवनी पासे
चक्रवर्तीना राजनीये कांई किंमत नथी. अनंत गुणनो अचिंत्यवैभव तारा
असंख्यप्रदेशी स्वराजमां सर्वत्र ठांसी ठांसीने भरपूर भर्यो छे. अनंतगुणने
रहेवा माटे क्षेत्र पण अनंत होवुं जोईए–एवुं कांई नथी. जेम अनंतानंतप्रदेशी
आकाशमां तेना अनंता गुणो रहेला छे तेम एकप्रदेशी परमाणुमां पण तेना
अनंतगुणो रहेला छे. अनंतप्रदेशी आकाश के एकप्रदेशी परमाणु–बंनेनुं अस्तित्व
पोतपोताना अनंतगुणथी परिपूर्ण छे. आकाशनुं क्षेत्र मोटुं माटे तेनुं सामर्थ्य
मोटुं ने परमाणुनुं क्षेत्र नानुं माटे तेनुं सामर्थ्य ओछुं–एम क्षेत्र उपरथी शक्तिनुं
माप नथी. नानामां नानो परमाणु ने मोटामां मोटुं आकाश–ए बंनेनुं अस्तित्व
पोतपोताना स्वभावमां परिपूर्ण छे. तेम आत्मा असंख्यप्रदेशी स्वक्षेत्रमां
अनंतागुण–स्वभावोथी परिपूर्ण छे.
जुओ तो खरा, वस्तुनो अचिंत्यस्वभाव! अचिंत्य वस्तुस्वभावमांथी
सुखनां झरणां झरे छे. आत्मा असंख्यप्रदेशी (आखा लोकना जेटला प्रदेशो छे
तेटला प्रदेशोवाळो), तेनो दरेक गुण पण तेवडो ज असंख्यप्रदेशी, ने तेनी
परिणतिमां आनंद वगेरेनो जे अंश खील्यो ते पण तेवडो ज असंख्यप्रदेशी छे.
द्रव्य–गुण–त्रिकाळ ने परिणति एक समयनी छतां क्षेत्र बंनेनुं सरखुं छे. एक ज
क्षेत्रमां अनंत गुणो एकसाथे, छतां एक गुण ते बीजो गुण नहि; क्षेत्रथी भिन्न
नहि पण भावथी भिन्न छे. आवा भिन्न भिन्न अनंत गुणोनुं बेहदसामर्थ्य
आत्मामां भरेलुं छे. आवा आत्मवैभवने जाणे (एटले के भूतार्थ स्वभावने
जाणे) तो जैनदर्शन जाण्युं कहेवाय. आत्माना शुद्धस्वभावने अनुभवमां लेवो ते
ज सर्व जैनसिद्धांतनो सार छे.
सुख आत्माना स्वभावमां सदाय भर्युं छे; आवा चैतन्यस्वभावने जाणतां
अनाकुळता प्रगटे छे, ते सुखशक्तिनुं कार्य छे. पर्याये अंदरमां जईने,