कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे सन्तोए प्रसिद्ध करी छे. जेम कोठारमां भरेलुं अनाज काणुं पाडीने
बहार काढे छे, अंदर भर्युं छे ते ज बहार आवे छे, तेम आ अखंड चैतन्यकोठी अनंत
गुणना भंडारथी भरेली छे, तेना श्रद्धाज्ञान वडे ते पर्यायमां प्रगट थाय छे...ने पछी ते
आनंद वगरनुं ज्ञान ते साचुं ज्ञान नथी. ने ज्ञान वगर आनंद होतो नथी. आम ज्ञान–
आनंद वगेरे शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन आत्माना ज्ञानमात्र भावमां उल्लसी रह्युं
छे.
प्र: मति–श्रुतज्ञानमां आत्माने प्रत्यक्ष करवानी ताकात छे?
उ: हा, स्वसंवेदनवडे आत्माने प्रत्यक्ष करवानी मति–श्रुतज्ञानमां पण ताकात
उ: आत्मानो खरो निर्णय तेने कहेवाय के जे निर्णयना बळे विकल्प तूटीने जरूर
उ: कोईने अंतर्मुहूर्तमां पण अनुभव थई जाय छे.