Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
कोईनी मदद लेवी पडे तेम नथी. आनंदना भंडार भर्या छे ते केम खूले–ए वात
कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे सन्तोए प्रसिद्ध करी छे. जेम कोठारमां भरेलुं अनाज काणुं पाडीने
बहार काढे छे, अंदर भर्युं छे ते ज बहार आवे छे, तेम आ अखंड चैतन्यकोठी अनंत
गुणना भंडारथी भरेली छे, तेना श्रद्धाज्ञान वडे ते पर्यायमां प्रगट थाय छे...ने पछी ते
वधीने पूर्ण थाय छे.
ज्यां आत्मानुं सम्यग्ज्ञान थाय त्यां सुख पण भेगुं होय ज; ज्ञानना
परिणमननी साथे अनंतशक्तिओ भेगी परिणमे छे. आनंद वगरनुं ज्ञान होय नहि.
आनंद वगरनुं ज्ञान ते साचुं ज्ञान नथी. ने ज्ञान वगर आनंद होतो नथी. आम ज्ञान–
आनंद वगेरे शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन आत्माना ज्ञानमात्र भावमां उल्लसी रह्युं
छे.
निर्णय
अने
अनुभव

प्र: मति–श्रुतज्ञानमां आत्माने प्रत्यक्ष करवानी ताकात छे?
उ: हा, स्वसंवेदनवडे आत्माने प्रत्यक्ष करवानी मति–श्रुतज्ञानमां पण ताकात
छे.
प्र: आत्मानो खरो निर्णय क्यारे कहेवाय?
उ: आत्मानो खरो निर्णय तेने कहेवाय के जे निर्णयना बळे विकल्प तूटीने जरूर
अनुभव थाय.
प्र: निर्णय पछी अनुभवमां केटलुं अंतर रहे?
उ: कोईने अंतर्मुहूर्तमां पण अनुभव थई जाय छे.
राजकोट–चर्चामांथी