भेदज्ञान माटे जेने अंतरमां जिज्ञासा
छे एवो शिष्य पूछे छे के प्रभो! आत्मा
ज्ञानस्वरूप थयो ते कई रीते ओळखाय?
आत्मा भेदज्ञानी थयो ते कई रीते ओळखाय?
ज्ञानीने ओळखवानुं चिह्न शुं? अनादिथी
आत्मा विकाररूप थयो थको अज्ञानी हतो, ते
अज्ञान टाळीने आत्मा ज्ञानी थयो ते क्या
चिह्नथी ओळखाय?–ते समजावो.
चिह्न ओळखावे छे.
जे आत्मा ज्ञानी थयो ते पोताने एक ज्ञायकस्वभावी ज जाणतो थको ज्ञानभावे
ज्ञानी ओळखाता नथी, ज्ञानी तो तेनाथी भिन्न छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के हे
शिष्य! जे जीव ज्ञानने अने रागने एकमेक नथी करतो पण जुदा ज जाणे छे, जुदा
जाणता थको रागादिनो कर्ता थतो नथी पण ज्ञाता ज रहे छे ने ज्ञानपरिणामनो ज कर्ता
थईने परिणमे छे, तेने तुं ज्ञानी जाण.