Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
व्याप्य–व्यापकपणाना सिद्धांत उपर अहीं ज्ञानीनी ओळखाण करावी छे.
ज्ञानपरिणामनी साथे जेने व्याप्य–व्यापकपणुं छे ते ज्ञानी छे; विकार साथे जेने
व्याप्य–व्यापकपणुं छे ते अज्ञानी छे. व्याप्य–व्यापकपणुं एक स्वरूपमां ज होय,
भिन्नस्वरूपमां न होय; एटले जेने जेनी साथे एकता होय तेने तेनी ज साथे
व्याप्य–व्यापकपणुं होय, अने तेनी ज साथे कर्ताकर्मपणुं होय. ज्ञानी ज्ञान साथे ज
एक्ता करीने तेमां ज व्यापतो थको तेनो कर्ता थाय छे, एटले ज्ञानरूप कार्यथी
ज्ञानी ओळखाय छे. आवो ज्ञानी विकार साथे एक्ता करतो नथी, तेमां ते व्यापतो
नथी ने तेनो ते कर्ता थतो नथी. आ रीते ज्ञानने विकार साथे एकता नथी.
ज्ञानीनुं आवुं लक्षण जे जीव ओळखे तेने भेदज्ञान थाय, तेने विकारनुं कर्तृत्व ऊडी
जाय अने ज्ञानमां ज एकतारूपे परिणमतो थको ते ज्ञानी थाय. भेदज्ञान वगर
ज्ञानीनी साची ओळखाण थती नथी.
जेम घडाने अने माटीने एकता छे, परंतु घडाने अने कुंभारने एक्ता नथी, तेम
ज्ञानपरिणामने अने आत्माने एक्ता छे; परंतु ज्ञानपरिणामने अने रागने के कर्मने
एक्ता नथी; एटले ज्ञानपरिणाम वडे ज ज्ञानीनो आत्मा ओळखाय छे;
ज्ञानपरिणामने रागथी भिन्न ओळखतां, पोतामां पण ज्ञान अने रागनी भिन्नतानुं
वेदन थईने, ज्ञानपरिणाम साथे अभेद एवो पोतानो आत्मा ओळखाय छे. ज्ञानीने
ओळखवानुं प्रयोजन तो पोताना आत्मानी ओळखाण करवी ते ज छे. जेणे भेदज्ञान
करी लीधुं छे एवा जीवोनी ओळखाण वडे आ जीव पोतामां पण एवुं भेदज्ञान करवा
मांगे छे. सामा ज्ञानीना आत्मामां ज्ञान अने रागने जुदा ओळखे ते जीव पोतामां
पण ज्ञान अने रागने जरूर जुदा ओळखे, एटले तेने जरूर भेदज्ञान थाय. भेदज्ञान
थतां आ जीव सकळ विकारना कर्तृत्वरहित थईने ज्ञायकपणे शोभे छे. विकारना
कर्तृत्वमां तो जीवनी शोभा हणाय छे, ने भेदज्ञानवडे ते कर्तृत्व छूटतां आनंदमय
ज्ञानपरिणामथी जीव शोभी ऊठे छे. आवा ज्ञानपरिणाम ते ज ज्ञानीने ओळखवानी
निशानी छे.
जुओ, आ ज्ञानीने ओळखवानी रीत! अहा! ज्ञानीनी ओळखाणनी रीत
आचार्यदेवे अद्भुत बतावी छे. आ रीतथी ज्ञानीने जे ओळखे ते पोते ज्ञानी थया
विना रहे नहि, एवी आ ओळखाण छे. आ ओळखाण ए ज धर्मनी मोटी खाण