अंतर्मुख थईने जे निर्विकल्प थाय छे ते ज परमपदने पामे छे. जे जीव चैतन्यस्वरूपने
चूकीने संकल्प–विकल्पने अपनावे छे ते परमपदने पामतो नथी.
तेनाथी लाभ मानवा जेवुं छे. आत्मानो चिदानंद स्वभाव आनंदनुं मूळ छे, ने ते
स्वभावमांथी बहार नीकळीने जे कोई शुभ–अशुभवृत्ति ऊठे छे ते बधी आकुळताजनक
छे, संसारदुःखनुं ज कारण छे. तेने छोडीने चिदानंदतत्त्वमां ठरवाथी ज परमआनंदनो
अनुभव थाय छे.
छे के अहो! चैतन्यस्वरूपमां एकाग्र थईने परम वीतरागी आनंदनुं वेदन करवुं ते ज
एक अमने परम ईष्ट छे, ते ज अमने वहालुं छे, ते ज अमारुं प्रिय पद छे, ए सिवाय
रागनी वृत्ति ऊठे ते दुःखदायक छे, ते अमने ईष्ट नथी, ते अमने प्रिय नथी, ते अमने
वहाली नथी. अमे ते रागनी वृत्ति छोडीने चैतन्यमां ज लीन रहेवा मांगीए छीए.
हितकर नथी पण दुःखकर छे. ते संकल्प–विकल्पनो नाश करीने चैतन्यस्वरूपमां लीनता
करवाथी ज ईष्ट एवुं परम पद प्राप्त थाय छे–एम भगवाने कह्युं छे. अव्रत के व्रतनी
वृत्ति ऊठे ते ईष्ट नथी, तेमज तेनाथी ईष्टपदनी प्राप्ति थती नथी, निर्विकल्प आनंदनुं
वेदन थाय ते ज आत्माने ईष्ट छे.
झूकावथी जे संकल्प–विकल्प थाय तेमां ज अज्ञानी फसाई रहे छे; परंतु अहीं तो ते
उपरांत एम कहे छे के चैतन्यस्वरूप आत्मानुं भान थया पछी पण अस्थिरताथी जे
व्रतादिना विकल्प ऊठे छे ते पण आकुळतारूप छे–बंधनुं कारण छे–दुःखनुं कारण छे. भले