Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : १९ :
सीधी रीते बाह्य विषयोमां प्रवर्ततो न होय, पण जो अंदर संकल्प–विकल्पना गणगणाट
थता होय तो ते पण दुःखरूप छे. संकल्प–विकल्प सर्वथा छूटया पहेलां पण आ वातनो
निर्णय करवो जोईए. अहो! मने शांति अने आनंद तो मारा आत्माना अनुभवमां ज
छे, संकल्प–विकल्प ऊठे तेमां मारी शांति नथी. साधकदशामां व्रत–तपना विकल्प तो
आवे, पण ते छोडीने स्वरूपमां ठरीश त्यारे ज मने मारा पूर्णानंदनी प्राप्ति थशे–एम जे
निर्णय नथी करतो अने ते विकल्पथी लाभ माने छे ते तो अज्ञानी छे; ईष्टपद शुं छे तेनी
पण तेने खबर नथी, तेणे तो रागने ज ईष्ट मान्यो छे. ज्ञानी तो पोताना चैतन्यपदने
ज ईष्ट समजे छे, ने अव्रत तेमज व्रत बंने छोडीने चिदानंदस्वरूपमां लीनताथी ते परम
ईष्टपदने पामे छे. ज्यांसुधी संकल्प–विकल्पनी जाळमां गूंचवाया करे त्यांसुधी
परमसुखमय ईष्टपदनी प्राप्ति जीवने थती नथी; ज्यारे अंतरना संकल्प–विकल्पनी
समस्त जाळ छोडीने पोते पोताना चैतन्यचमत्काररूप विज्ञानघन आत्मामां लीन थाय
छे. त्यारे ज अनंतसुखमय परमपदनी प्राप्ति थाय छे.
।। ८प।।
चैतन्यस्वरूप आत्मानुं जेने भान छे अने समस्त संकल्प–विकल्पोनी जाळनो
नाश करवा माटे जे उद्यमी छे एवो जीव क्या क्रमथी तेनो नाश करे छे ते बतावे छे–
अव्रती व्रतमादाय व्रती ज्ञानपरायणः।
परात्मज्ञानसंपन्नः स्वयमेव परो भवेत्।।८६।।
अव्रती व्रतने ग्रहण करीने अव्रतसंबंधी विकल्पोनो नाश करे, अने पछी
ज्ञानपरायण थईने एटले ज्ञानमां लीन थईने व्रतसंबंधी विकल्पोनो पण नाश करे.
आ रीते ज्ञानभावनामां लीनता वडे ते जीव परात्मज्ञान–संपन्न–उत्कृष्टआत्मज्ञानसंपन्न
एटले के केवळज्ञानसंपन्न परमात्मा थाय छे.
सौथी पहेलां सम्यग्दर्शन तो थयुं छे त्यारपछीनी आ वात छे. जेने सम्यग्दर्शन
नथी तेने तो अव्रतनो त्याग होतो नथी, तेने तो अंशमात्र समाधि होती नथी.
हुं विकल्पोथी पार ज्ञानानंदस्वरूप छुं–एवुं जेने सम्यक्भान नथी ते शेमां
एकाग्र थईने संकल्प–विकल्पोने छोडशे? चैतन्यस्वरूपमां जेटली एकाग्रता थाय तेटली
ज समाधि थाय छे. जुओ, केवळी भगवानने परिपूर्ण अनंतसुखरूप समाधि ज छे.
मुनिदशामां जे व्रतादिनो विकल्प ऊठे छे तेटली पण असमाधि छे, समकितीने जे
अव्रतोनो विकल्प ऊठे तेमां विशेष असमाधि छे; अने मिथ्याद्रष्टिने तो घोर असमाधि
छे. जेटली असमाधि छे तेटलुं दुःख छे. केवळी भगवंतोने परिपूर्ण अनंतसुख छे;
त्यारपछी बारमा वगेरे गुणस्थाने तेनाथी ओछुं सुख छे. मुनिओने जेटलो संज्वलन
कषाय छे तेटलुं पण दुःख छे, ने जेटली ज्ञानपरायणता छे तेटलुं सुख छे.