थता होय तो ते पण दुःखरूप छे. संकल्प–विकल्प सर्वथा छूटया पहेलां पण आ वातनो
निर्णय करवो जोईए. अहो! मने शांति अने आनंद तो मारा आत्माना अनुभवमां ज
छे, संकल्प–विकल्प ऊठे तेमां मारी शांति नथी. साधकदशामां व्रत–तपना विकल्प तो
निर्णय नथी करतो अने ते विकल्पथी लाभ माने छे ते तो अज्ञानी छे; ईष्टपद शुं छे तेनी
पण तेने खबर नथी, तेणे तो रागने ज ईष्ट मान्यो छे. ज्ञानी तो पोताना चैतन्यपदने
ज ईष्ट समजे छे, ने अव्रत तेमज व्रत बंने छोडीने चिदानंदस्वरूपमां लीनताथी ते परम
ईष्टपदने पामे छे. ज्यांसुधी संकल्प–विकल्पनी जाळमां गूंचवाया करे त्यांसुधी
परमसुखमय ईष्टपदनी प्राप्ति जीवने थती नथी; ज्यारे अंतरना संकल्प–विकल्पनी
समस्त जाळ छोडीने पोते पोताना चैतन्यचमत्काररूप विज्ञानघन आत्मामां लीन थाय
छे. त्यारे ज अनंतसुखमय परमपदनी प्राप्ति थाय छे.
परात्मज्ञानसंपन्नः स्वयमेव परो भवेत्।।८६।।
आ रीते ज्ञानभावनामां लीनता वडे ते जीव परात्मज्ञान–संपन्न–उत्कृष्टआत्मज्ञानसंपन्न
एटले के केवळज्ञानसंपन्न परमात्मा थाय छे.
ज समाधि थाय छे. जुओ, केवळी भगवानने परिपूर्ण अनंतसुखरूप समाधि ज छे.
मुनिदशामां जे व्रतादिनो विकल्प ऊठे छे तेटली पण असमाधि छे, समकितीने जे
अव्रतोनो विकल्प ऊठे तेमां विशेष असमाधि छे; अने मिथ्याद्रष्टिने तो घोर असमाधि
छे. जेटली असमाधि छे तेटलुं दुःख छे. केवळी भगवंतोने परिपूर्ण अनंतसुख छे;
त्यारपछी बारमा वगेरे गुणस्थाने तेनाथी ओछुं सुख छे. मुनिओने जेटलो संज्वलन