: २० : आत्मधर्म जेठ : २४९३
समकितीने चोथा गुणस्थाने अव्रत संबंधी विकल्पो होवा छतां, ते श्रद्धाअपेक्षाए
तो ज्ञानपरायण ज छे, विकल्पपरायण नथी,–विकल्पथी लाभ मानतो नथी.
पहेलां अव्रतनो त्याग करीने व्रती थवानुं कह्युं, त्यां कोई एम माने के आपणने
सम्यग्दर्शन भले न हो, पण पहेलां अव्रत छोडीने व्रत लई लेवां, पछी सम्यग्दर्शन थवुं
हशे तो थशे!–तो एम माननार महा मूढ छे, तेने जैनशासननी परिपाटीनी खबर
नथी. सम्यग्दर्शन वगर कदी व्रत होय ज नहि ने अव्रत छूटे ज नहि. पहेलां मिथ्यात्व
छूटे पछी ज अव्रत छूटे ने पछी ज व्रत छूटे. मिथ्यात्व ज जेनुं छूटयुं नथी तेने
अव्रतादिनो त्याग थई शके ज नहि. जेने सम्यग्दर्शन ज नथी ते तो बहिरात्मा छे.
अहीं तो ते बहिरात्मपणुं छोडीने जे अंतरात्मा थया छे–सम्यग्द्रष्टि थया छे, ते
अंतरात्मामांथी परमात्मा थवानी आ वात छे. अंतरात्मा थया पछी ज्ञानानंदस्वरूपमां
लीन थवाथी ज परमात्मदशा थाय छे. पहेलां ज जेणे मिथ्यात्व तो छोड्युं छे ने
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं भान कर्युं छे एवा समकिती पहेलां अव्रतने छोडीने, अने
पछी व्रतने पण छोडीने, पोताना चिदानंदस्वरूपमां निर्विकल्पपणे लीन थईने
केवळज्ञान प्रगटावीने परमात्मा थाय छे ने सिद्धपद पामे छे.
–आ रीते ज्ञानभावना ज मोक्षनुं कारण छे, व्रतादिना विकल्पो मोक्षनुं कारण नथी.
।। ८६।।
जेम व्रतादिना विकल्पो मोक्षनुं कारण नथी तेम मुनिलिंगनो विकल्प पण मोक्षनुं
कारण नथी–एम हवे आचार्यदेव कहेशे.
चक्रवर्तीनुं बळ
चक्रवर्तीना राजनुं जे क्षेत्र (एटले के छखंड) तेमां वसनार समस्त देवो अने
मनुष्योनुं जेटलुं बळ छे तेना करतां अनेकगणुं बळ चक्रवर्तीनी भूजामां छे,–एम
आदिपुराणमां कह्युं छे.
जेनी भूजानुं आटलुं बळ, तेना संपूर्ण बळनी शी वात! अने अनंतगुणथी
भरेला एवा तेना आत्मबळनी शी वात!
हे जीव! तुं पण ज्ञानचक्रनो धारक चैतन्यचक्रवर्ती छो. तारा ज्ञानचक्रवडे समस्त
विभावोने भेदी नाखवानी तारी ताकात छे. एककोर जगतना समस्त जड–चेतन
पदार्थो, ने बीजी कोर तुं एकलो, छतां ज्ञानचक्रवडे समस्त ज्ञेयोने पहोंची वळवानी
तारी ताकात छे. समस्त ज्ञेयो करतां अनंतगुणी तारी ताकात छे.
तुं आवो चक्रवर्ती थईने अन्य पासे भीक्षा कां माग?
तारा अनंत चैतन्यनिधानने आनंदथी भोगव.