Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
* वींछीयाथी स. नं. ६६६ तथा ६६७ लखे छे के– उनाळानी रजाओमां आठ
दिवस अमे बोटादमां गुरुदेवनी छत्रछायामां रह्या, भावभीनी अमृतवाणी सांभळी ए
अमारा महाभाग्य, आनंदकारी जन्मोत्सव पण जोयो ने गुरुदेवना प्रतापे जीवनमां हजी
घणा धार्मिक संस्कारो प्राप्त करवानी भावना छे.
* अमदावादना उमेश जैन (नं. प७०) लखे छे– प्रिय मित्र, रजाओमां
राजकोट आवीने शिक्षणवर्गनो ने गुरुदेवना प्रवचनोनो लाभ लीधो; आनंद आव्यो. त्यांना
कलासमांथी छूटा पड्या पछी मने अहीं गमतुं नथी. कलास पछी हु मारे गाम सायला गयो
हतो ने त्यां धर्मचर्चा करी हती, त्यांना लोकोने तेमां रस आव्यो हतो ने गुरुदेवना
प्रवचननो लाभ लेवानी भावना थई हती. अहीं अमदावादमां मारा घरथी मंदिर घणुं दूर
छे. बोटादमां गुरुदेवनी जन्मजयंतिमां पण हुं हतो, पछी राजकोटमां पण हतो, त्यां
भगवाननी रथयात्रामां मजा पडी. हुं सोनगढ न आवी शक्यो तेनुं मने दुःख छे. हवे तो
अमारा अमदावादमां पण मंदिर बंधाई रह्युं छे ने तेनो ओच्छव थशे...त्यारे गुरुदेव पधारशे
तेनी राह जोईए छीए. ने शिक्षण वर्ग पण अमदावादमां चाले तो केवुं सारूं! तुं पण त्यारे
जरूर आवजे. जयजिनेन्द्र!
* मुंबईथी भरत एच. जैन लखे छे– पू. गुरुदेव साथे तीर्थयात्रा अने
पंचकल्याणक वगेरे उत्सवोनो लहावो लईने सौ सोनगढमां स्थिर बन्या हशो, खरेखर
सोनगढनुं जीवन तो जुदुं ज छे. बालविभागनी ‘पत्रयोजना’ खूब गमी, तेथी
बालविभागना बधा साधर्मी बंधुओने संबोधीने पत्र लखतां आनंद थाय छे.
प्रिय साधर्मी मित्रो! परीक्षाओ पूरी थया पछी रजामां तमे गुरुदेव साथे यात्रामां के
राजकोटना शिक्षणवर्गमां अभ्यास करवा गया हशो, ने धार्मिक चिंतन–मनन कर्युं हशे. जो के
हुं आवी न शक्यो पण में मुंबईमां हरवा–फरवानुं ओछुं करीने धार्मिक अभ्यासमां मन
जोड्युं. शरूआतमां जरा कंटाळो लागतो पण अहींना धार्मिक शिक्षणवर्गमां जवा लाग्यो ने
धीमे धीमे रस आववा लाग्यो. शरीर अने आत्मानी भिन्नता, अनेकान्तनुं स्वरूप ने
उपादान निमित्तनी स्वतंत्रता–ए बधुं समजावीने गुरुदेवे खरेखर महा उपकार कर्यो छे.
अमारा धर्मशिक्षक अमने दररोजनुं ‘घरलेशन’ पण आपता–पण ए लेशन नोटबुकमां
लखवानुं नहि हो,–आ लेशन तो खूब मजानुं; शिक्षके एवुं लेशन आप्युं के रोज रात्रे सूता
पहेलां तमाराथी बने तेटलो वखत बधा मित्रोए मळी धार्मिक चर्चा–विचारणा करवी.–
अमने एमां मजा पडती ने घणुं जाणवानुं मळतुं.–पछी पंचपरमेष्ठीनुं स्मरण करवुं ने
आत्मविचारमां चित्त लगाडवुं. निजगुणोनो विचार करवो. देहथी भिन्नतानो विचार करवो;
आवुं घरलेशन आपता.
बंधुओ, एक वात चोक्कस छे के साचा देव–गुरु ने शास्त्र ज आपणने मोक्षना सम्यक्
मार्गे लई जशे, माटे तेमनुं बहुमानपूर्वक आराधन करवुं; बहारनी दुनियाना माया–ममता,
राग–द्वेष, चोरी–कपट, असत्य वगेरे पापो तजीने प्रबळ पुरुषार्थ वडे अखंड आनंदस्वरूप
आत्मानी सिद्धि प्राप्त करीने जलदी मोक्ष पामीए एवी निरंतर भावना भाववी.