Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
बंधु, नानपणमां अत्यारथी आपणे आवी उत्तम भावना भावशुं तो तेना संस्कार
जीवनमां खूब उपयोगी थशे. शरूआतमां रात्रे खावानुं मन थतुं पण हवे में रात्रे खावानुं
छोडी दीधुं छे. बस, तारी धार्मिक भावनाओ पण जणावजे. जयजिनेन्द्र
* शारदाबेन जैन (स. नं. ७१८) वींछीयाथी लखे छे– बोटादनगरमां वैशाख
सुद बीजे गुरुदेवनी जन्मजयंति आनंदपूर्वक उजवीने घरे आवतां ज मारा जन्मदिवसनुं
अभिनंदन कार्ड अने साथे गुरुदेवनो फोटो देखीने घणो ज आनंद थयो. तेनी खुशालीमां में
बालविभागने रूा. ३/ भेट मोकलेल छे. भगवान ऋषभदेवनुं पुस्तक वांचवुं शरूं कर्युं छे. बहु
आनंद आवे छे. बाळको माटे आवा धार्मिक पुस्तको पण वधु ने वधु बहार पडे–ए ज भावना.
* राजकोट ८ वर्षना सुभाषभाई (स. न. ४) लखे छे– धर्मप्रिय बंधु, गुरुदेव
राजकोट पधार्या त्यारे भव्य स्वागतमां अमे पण हाथमां केसरी झंडा लईने स्वागतगीत
गाता हता. गुरुदेव राजकोट रोकाया ते दरमियान मारा भाई साथे ७ा थी ८ पूजामां तथा ८
थी ९ प्रवचनमां अने ९ा थी १०ा धार्मिक शिक्षण वर्गमां जतो हतो. वळी बपोरे प्रवचनमां,
भक्तिमां ने शिक्षणवर्गमां जतो हतो. रात्रे चर्चामां पण जतो हतो. हुं रोज सवारमां ऊठीने
नमोक्कार–मंत्रनुं स्मरण करुं छुं. हुं नानो हतो त्यारथी जैन बाळपोथी भणतो; चार वर्षनो
हतो त्यारथी मने नमोक्कार मंत्र आवडे छे. त्रण वर्ष पहेलां अमारा घरमां यशोधरमुनिनो
फोटो छे, ते यशोधरमुनिनी जेम पद्मासन वाळीने ध्यानमां बेसवानुं मने मन थतुं; हवे बे
वर्षथी अमारा घरमां बाहुबलीनो फोटो आव्यो छे तेथी हवे बाहुबलीनी जेम ऊभा ऊभा
सीधा हाथ राखीने भगवान सामे मोढुं राखी ध्यान धरतां शीखुं छुं. हुं धार्मिक वार्ता बे
सखी, दर्शनकथा, भगवान महावीर, भगवान ऋषभदेव, रत्नसंग्रह, अकलंक–निकलंक वगेरे
वांचुं छुं ने ते मने गमे छे, पण मने सौथी वहाली वस्तु जैन बाळपोथी छे. ने हुं पहेली
चोपडी भणतो त्यारथी ए ज वांचुं छुं. मने धर्म करवो बहु ज गमे छे. केमके मारे मोक्ष जावुं
छे. हुं आठ वर्षनो बाळक छुं माटे भूलचूक माफ करजो. (लगभग आवो ज पत्र आ भाईनी
दसवर्षनी बहेन मायाबहेने पण लख्यो छे.)
* अमदावादथी दिलीप जैन (नं. १००) लखे छे– आ वेकेशन धर्म समजवा
पाछळ गाळ्‌युं छे; गुरुदेव अमदावाद आव्या त्यारथी तेमनी साथे ज हतो. बोटादमां
जन्मजयंति भव्यताथी उजवी. पछी राजकोट २० दिवस शिक्षणवर्गमां जोडायो; त्यां आखो
दिवस कार्यक्रम भरचक हतो..........जे करवा जेवुं छे ते आत्मानी ओळखाण करवी जोईए,
ए वात गुरुदेव वारंवार समजावता हता. गुरुदेवनी छत्रछायामां वेकेशनना दिवसो
आनंदथी वीत्या. मारुं गाम सायला छे, त्यां अमारुं बे माळनुं मकान दस वीस वरसथी
खाली पड्युं छे. मारी भावना छे के तेमां गामोगामनी जेम गुरुदेवनुं टेपरेकर्ड थयेलुं प्रवचन
सांभळवानो अमारा गामना लोकोने लाभ मळे! जयजिनेन्द्र
* सतीशकुमार पी. जैन वींछीयाथी बालमित्रोने लखे छे– आ उनाळानी रजामां
अमे प्रथम आठ दिवस बोटाद गया ने गुरुदेवनां प्रवचनो सांभळ्‌या, चर्चा–भक्ति–पूजामां