Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
पण लाभ लीधो ने वैशाख सुद बीज ऊजवीने वींछीया आव्या. अहीं हुं हंमेशा पूजामां जाउं छुं;
ने बपोरे वांचनमां बेसुं छुं; तेमां छ ढाळा चाले छे. वेकेशन होवाथी अमे घणा बाळको तेमां
भणीए छीए, ने आनंद आवे छे. रात्रे पण समयसारना वांचनमां जाउं छुं. तेमां मने बहु रस
पडे छे. मित्रो! तमे पण पाठशाळा जता हशो. धार्मिक अभ्यास करी खूबखूब आगळ वधीए ने
मोक्षपुरीनी मोज माणीए ने सिद्धभगवाननी जेम वीतरागी आनंदमां झुलीए–ए ज भावना.
* प्रिय बंधु (स NO 14)तमारो पत्र मळ्‌यो; तमे रजाओनो उपयोग माउन्ट
आबु वगेरे जोवामां कर्यो...ए तमारा पत्रथी जाण्युं. परंतु अमे तो ते वखते तमारा गाममां
(राजकोटमां) आवीने धार्मिक शिक्षणनो लाभ लीधो...तमारा गाममां अमने बहु मजा पडी.
आत्मानुं हित थाय एवा गुरुदेवना प्रवचनोनो तथा धार्मिक शिक्षणनो सुंदर लाभ मळ्‌यो.
त्यांना भव्य मंदिर मानस्तंभ ने समवसरणनी रचना अमने तो आबु करतांय वधारे
गम्या. तमारा गाममां वेकेशन वखते आवो सरस सुयोग होवा छतां तमने आबु जवानुं
केम मन थयुं! आवता वेकेशनमां तो तमे जरूर सोनगढ जाजो, हुं पण आवीश. –
जयजिनेन्द्र
* सभ्य नं. ११ लखे छे के:– प्रिय धर्मबंधुओ, स्कुलनी परीक्षाओ पूरी थई, पण
धर्मनी परीक्षामां पास थवानी तेयारी करवी पडशे, तमे सौ राजकोटना शिक्षणवर्गमां
गुरुदेवनी छायामां आनंदथी लाभ लेता हशो. हुं राजकोट कलासमां आवी न शक्यो; पण
धर्मनी परीक्षा माटे तैयारी करवा में मारी रजाओनो उपयोग कर्यो. सिद्धांतप्रवेशीकाना ४०
प्रश्नो कर्या, तेमज भगवान ऋषभदेव, अकलंक–निकलंक, नाटक, दर्शनकथा, बे राजकुमारनो
वैराग्य, कथामंजरी, बेसखी वगेरे पुस्तको वांच्यां, पुस्तको वांचवामां खूब रस पड्यो. तमे
पण धर्मपुस्तकोनुं वांचन कर्युं हशे. छ ढाळानी १० गाथा पण मोढे करी.
* मोरबीथी रमेश जैन अने प्रकाश जैन (NO 671) लखे छे के– आ वखते
रजाओमां पू. महाराज साहेब राजकोट होवाथी अमे पण राजकोट गया हता, ने त्यां
कलासमां धर्मनुं भणता हता. अमारा जेवा घणाय विद्यार्थीओ आव्या होवाथी अमने बहु
मजा आवी हती, ने आत्माने समजवानी वात अमने बहु गमती हती. राजकोटथी गीरनार
तीर्थ नजीक होवाथी अमे गीरनारनी जात्रा करवा पण गया हता. अमारा मोटाभाई पण
साथे हता. नेमनाथ भगवाननुं नाम लेतां लेतां पर्वत चढवानी अमने बहु मजा आवी.
ऊंचो ऊंचो गीरनार पर्वत वादळथी पण ऊंचो छे. अमे पर्वत उपर हता त्यारे नीचे वादळा
दोडता हता, जाणे अमे वादळ उपर बेसीने उडता होय एम थतुं हतुं. अमे ठेठ पांचमी टूंके
जात्रा करी आव्या, त्यांथी भगवान नेमनाथ मोक्ष पाम्या छे. गीरनारनी जात्रा पहेली ज
वार करी तेथी घणो आनंद थयो. अमे राजुलमातानी गूफा पण जोई ने धनसेनस्वामीनी
चंद्रगूफामां पण जई आव्या. गामना बागमां सिंह पण जोयो. आ जात्रा जीवनमां कदीय
भूलाशे नहीं. आ रीते रजामां अमने मजा पडी.
जयजिनेन्द्र
(बाकीना पत्रो आवता अंके)