Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : २प :
* परम शांति दातारी *
अध्यात्म भावना
(अंक २८२ थी चालु) (लेखांक ४९)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
* वीर सं. २४८२ श्रावण सुद बीज *
(गाथा ८३ चालु)

धर्मात्मा समस्त रागथी पोताना चिदानंदतत्त्वने जुदुं जाणे छे, रागना
अंशने पण पोताना अंतरंग स्वरूपपणे मानता नथी. आ रीते रागथी भिन्न
चैतन्यतत्त्वने जाणीने, तेमां अंशे एकाग्र थतां अव्रतोनो त्याग थई जाय छे. अने
पछी तेमां विशेष लीन थतां अव्रतोनी माफक व्रतोनो शुभराग पण छूटी जाय छे.
जेम अव्रतना अशुभभावो बंधनुं कारण छे तेम व्रतना शुभभावो पण बंधनुं
कारण छे, ते पण आत्मानी मुक्तिना बाधक छे, तेथी मोक्षार्थीने ते पण हेय छे.
जेम लोढानी बेडी पुरुषने बंधनकर्ता छे तेम सोनानी बेडी पण बंधनकर्ता ज छे,
छूटवाना कामीए ते बंने बेडीनां बंधन छोडवा योग्य छे; तेम पाप अने पुण्य बंने
जीवने बंधनकर्ता ज छे–एम जाणीने मोक्षार्थी जीवे ते बंने छोडवा जेवा छे. पुण्य ते
आत्मानी मुक्तिमां बाधकरूप छे– विघ्नरूप छे छतां तेने जे मोक्षनुं कारण माने छे ते
मिथ्याद्रष्टि छे, ते बंधना कारणने मोक्षनुं कारण माने छे, एटले खरेखर तेणे बंध–
मोक्षना स्वरूपने जाण्युं नथी.
अज्ञानीओ कहे छे के व्रतादि व्यवहार करतां करतां मुक्ति पमाशे. अहीं कहे
छे के व्रतादि व्यवहार तो मुक्तिमां विघ्न करनार छे. केटलो फेर! मूळ मान्यतामां ज
फेर छे. साधकने नीचली भूमिकामां ते व्रतादिनो राग छूटे नहि, पण ते रागने