Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
ते बाधकरूपे जाणे छे, तेने साधकरूपे नथी मानतो. अज्ञानी तो ते रागने साधकरूपे
जाणे छे एटले तेनी तो श्रद्धा ज खोटी छे.
अव्रतनी जेम व्रतनो शुभराग पण छोडवा जेवो छे–आ वात सांभळतां घणा
लोको राड नांखी जाय छे के ‘अरे! व्रत छोडवा जेवा?’–पण भाई रे, धीरा थईने
समजो तो खरा. व्रतनो शुभराग ते बंधनुं कारण छे के मोक्षनुं? ते राग तो बंधनुं ज
कारण छे ने मोक्षने तो विघ्न करनार छे. तो जे बंधनुं कारण होय ते छोडवा जेवुं होय के
आदरवा जेवुं? मोक्षार्थी जीवोए रागादिने बंधनुं ज कारण जाणीने ते छोडवा जेवा छे.
समाधि तो वीतरागभाववडे थाय, कांई रागवडे समाधि न थाय. माटे मोक्षार्थी जीवोए
अव्रतनी जेम व्रत पण छोडवा जेवा छे.
।। ८३।।
अव्रत अने व्रत बंनेने छोडवा जेवा कह्या, तेने छोडवानो क्रम शुं छे? ते हवे कहे
छे–
अव्रतानि परित्यज्य व्रतेषुं परिनिष्ठितः।
त्यजेत्तान्यपि संप्राप्य परमं पदमात्मनः।।८४।।
अव्रत अने व्रत बंनेथी भिन्न शुद्ध चैतन्यतत्त्वने ओळखीने, सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान
करीने पछी तेमां स्थिरताना उद्यम वडे पहेलां तो अव्रतो छोडीने धर्मी व्रतनुं पालन करे
छे–अर्थात् हजी चैतन्यमां विशेष स्थिरता नथी त्यां एवा व्रतोनो शुभराग आवे छे;
अने पछी शुद्धोपयोगवडे स्वरूपमां लीन थईने ते व्रतने पण छोडीने आत्माना
परमपदने प्राप्त करे छे. आ रीते अव्रत तेम ज व्रत बंनेने छोडीने, शुद्धोपयोगवडे
अंतरात्मा मुक्ति पामे छे.
पहेलां अव्रत छोडीने व्रतनो भाव आवे, त्यां धर्मी व्रतनुं पालन करे छे–एम
व्यवहारे कहेवाय; खरेखर जे व्रतनो राग छे ते रागना पालननी धर्मीने भावना नथी.
धर्मीने तो शुद्धोपयोगनी ज भावना छे. व्रतना विकल्पने छोडीने ते शुद्धोपयोगमां
ठरवा मांगे छे.
व्रतना विकल्प ज्यांसुधी छे त्यांसुधी मुक्ति थती नथी; अने व्रतना विकल्पथी
ज्यांसुधी लाभ माने छे त्यांसुधी तो मिथ्यात्वमांथी पण मुक्ति थती नथी.
व्रतनो शुभराग पण मोक्षनुं कारण नथी पण मोक्षने रोकनार छे माटे ते छोडवा
जेवो छे. आ वात सांभळतां मूढ जीवो कहे छे के ‘व्रत ते मोक्षनुं कारण नथी