छोडवानुं तो पहेलां ज कह्युं. व्रतने पण जे मोक्षनुं कारण न माने ते अव्रतना पापने तो
मोक्षनुं कारण केम मानशे? शुभ–अशुभ बंनेथी छूटीने आत्माना मोक्षनी वात
सांभळतां तेनी होंस आववी जोईए, तेने बदले जेने खेद थाय छे के ‘अरे! शुभ छूटी
जाय छे!’–तो तेने मोक्षनी रुची नथी पण रागनी ज रुचि छे एटले संसारनी ज रुचि
छे.
आगळ वधवा माटे कहे छे के आ व्रतना विकल्पोने पण छोडीने तुं स्वरूपमां स्थिर था,
तो तने परमात्मदशा प्रगट थशे.
निर्णयमां ज जेने विपरीतता होय, जे रागने मोक्षमार्ग मानतो होय, ते रागरहित
वीतरागी मोक्षमार्गने क्यांथी साधी शकशे? कुंदकुंदस्वामी तो स्पष्ट कहे छे के राग ते
मोक्षमार्ग नथी–पछी भले अरिहंत के सिद्ध प्रत्येनो ते राग होय!–
वीतराग थईने ए रीते, ते भव्य भवसागर तरे.
प्रत्ये खरी भक्ति जागशे. पण रागने जे मोक्षमार्ग मानशे तेने वीतराग प्रत्ये खरी
भक्ति नहीं जागे.
खाटी के मीठी आलोचनानी परवा कर्या विना