Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
तो शुं व्रत छोडीने अव्रत करवां?’–अरे मूर्ख! ए वात क्यांथी लाव्यो? अव्रतने
छोडवानुं तो पहेलां ज कह्युं. व्रतने पण जे मोक्षनुं कारण न माने ते अव्रतना पापने तो
मोक्षनुं कारण केम मानशे? शुभ–अशुभ बंनेथी छूटीने आत्माना मोक्षनी वात
सांभळतां तेनी होंस आववी जोईए, तेने बदले जेने खेद थाय छे के ‘अरे! शुभ छूटी
जाय छे!’–तो तेने मोक्षनी रुची नथी पण रागनी ज रुचि छे एटले संसारनी ज रुचि
छे.
अहीं तो उत्कृष्ट वात बतावे छे. जेणे आत्मानुं सम्यक्भान तो कर्युं छे, ते
उपरांत हिंसादिना पापभावोरूप अव्रत पण छोडीने अहिंसादि व्रत पाळे छे, तेने पण
आगळ वधवा माटे कहे छे के आ व्रतना विकल्पोने पण छोडीने तुं स्वरूपमां स्थिर था,
तो तने परमात्मदशा प्रगट थशे.
पहेलां आवा यथार्थ मार्गनो निर्णय करवो जोईए; मोक्षमार्ग तो
वीतरागभावमां ज छे, रागमां मोक्षमार्ग नथी, पछी ते अशुभ हो के शुभ; मार्गना
निर्णयमां ज जेने विपरीतता होय, जे रागने मोक्षमार्ग मानतो होय, ते रागरहित
वीतरागी मोक्षमार्गने क्यांथी साधी शकशे? कुंदकुंदस्वामी तो स्पष्ट कहे छे के राग ते
मोक्षमार्ग नथी–पछी भले अरिहंत के सिद्ध प्रत्येनो ते राग होय!–
तेथी न करवो राग जरीये क्यांय पण मोक्षेच्छुए,
वीतराग थईने ए रीते, ते भव्य भवसागर तरे.
‘तो पछी भगवाननी भक्ति कोई नहीं करे’–एम कोई कहे, तो कहे छे के अरे
भाई! भगवाने कहेली आवी वीतरागी वात जे समजशे तेने ज वीतरागभगवान
प्रत्ये खरी भक्ति जागशे. पण रागने जे मोक्षमार्ग मानशे तेने वीतराग प्रत्ये खरी
भक्ति नहीं जागे.
साचा तत्त्वना निर्णयपूर्वक अव्रत अने व्रत बंनेनो त्याग करवाथी शुं थाय छे?
ते हवेनी गाथामां कहेशे.
जो तने स्वयं तारा पर विश्वास होय तो,
खाटी के मीठी आलोचनानी परवा कर्या विना
तुं तारुं हितकार्य कर्ये जा.
*