Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
भगवन ऋषभदव
तेमनी आत्मिक – आराधनानी पवित्र कथा
भगवत् जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले. ब्र. हरिलाल जैन
(लेखांक – १४)
जेमना दश अवतारनी पवित्र कथा चाली रही छे
केवळज्ञाननो उत्सव अने समवसरणनी रचना
आपणा चरित्रनायक भगवान ऋषभदेवने केवळज्ञान थयुं, तेओ सर्वज्ञ
थया, अरिहंत थया, तीर्थंकर थया. जे वखते प्रभुने केवळज्ञान थयुं ते ज वखते
भरतराजाना शस्त्रभंडारमां चक्ररत्न उत्पन्न थयुं, अने ते ज वखते तेने त्यां
पुत्ररत्ननी प्राप्ति थई. एक साथे त्रणे वधामणी भरतने पहोंची. त्यारे, चक्रवर्तीनुं
राज अने पुत्र ए बंने करतां पण धर्मने महान समजनारा महाराजा भरत सौथी
पहेलां ऋषभदेव प्रभुना केवळज्ञाननो उत्सव करवा तैयार थया, ने अतिशय
आनंदपूर्वक धामधूमथी केवळीप्रभुनुं पूजन करवा समवसरण तरफ चाल्या. एने
अपार आनंद छे; तो आपणने य क्यां ओछो आनंद छे? एनी सवारी भगवान
पासे पहोंचे त्यार पहेलां आपणे समवसरणमां पहोंची जईए ने त्यांनी केवी
अद्भुत शोभा छे ते जोईए.
भगवानने केवळज्ञान थतां फरी पाछुं ईंद्रासन डोली ऊठ्युं; आखा जगतनो
संताप नष्ट थयो ने शांति छवाई गई; त्रणलोकमां क्षोभ थयो; स्वर्गना वाजिंत्रो जाणे
के भगवानना दर्शननुं सुख लेवा माटे देवोने निमंत्रण आपता होय तेम स्वयमेव
वागी ऊठ्या. ईन्द्रे अवधिज्ञानवडे भगवानने केवळज्ञान थवानुं जाणतां ज अत्यंत
आनंदित