Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 45

background image
: जेठ : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
अतिशय गंभीर ने मधुर ‘देवदुन्दुभी’ वाजां वागतां हतां.
जिनेन्द्रभगवानना शरीरमांथी उत्पन्न थती दिव्यप्रभा अर्थात् ‘भा–मंडल’ ना
तेज वडे आखी समवसरणभूमि शोभती हती.–भगवाननी आश्चर्यकारी प्रभा करोडो
देवोनां ने सूर्यनां तेजने ढांकी देती हती, ने भगवाननो महान प्रभाव प्रगट करती
हती. अहा, अमृतना समुद्र जेवी, अने जगतना अनेक मंगल करनारा दर्पण जेवी,
भगवानना शरीरनी ते मंगल प्रभामां मनुष्यो ने देवो प्रसन्नतापूर्वक पोताना सात–
सात भवो देखता हता.
भगवानना सर्वांगेथी ‘महादिव्यध्वनि’ छूटती हती; मधुरी मेघगर्जना जेवी
अने अतिशयवाळी ए दिव्यध्वनि भगवानना माहात्म्यथी सर्वभाषारूप थईने
भव्यजीवोना अज्ञान अंधकारने नष्ट करती हती ने तत्त्वनो बोध करावती हती.
सर्वज्ञभगवाननी ए दिव्यध्वनि एक होवा छतां श्रोताजनोनी पात्रता अनुसार अनेक
प्रकारनी थई जती हती.–अहा, ए जिनवाणीनी मधुरतानी शी वात!
आ रीते सिंहासन, पुष्पवृष्टि, अशोकवृक्ष, छत्र, चामर, देवदुंदुभि, ने
दिव्यध्वनि–एवा आठ प्रातिहार्ययुक्त समवसरण, अनंत चतुष्टयना नाथ एवा
सर्वज्ञदेव वडे शोभी रह्युं हतुं.
ईन्द्र–आगमन ने भगवाननी स्तुति
सातिशय पुण्यना बगीचा जेवी ए समवसरणनी शोभा देखीने ईन्द्रादि देवो
अति प्रसन्न थया ने भक्तिपूर्वक, ए भगवानने सेववा माटे समवसरणने त्रण
प्रदक्षिणा दईने सभामंडपमां दाखल थया. भगवाननुं श्रीमुख चारे बाजुथी देखातुं हतुं
अर्थात् तेओ चतुर्मुख हता. भगवानने अन्नपाणीनो आहार न हतो, वस्त्र–आभुषण
पण न हतां; ईन्द्रियजन्य ज्ञान पण न हतुं, ज्ञानावरणादि कर्मोना नाशथी तेओ सर्वज्ञ
हता; तेओ मोक्षसृष्टिना सर्जनहार अने पापसृष्टिना संहारक हता. आवा भगवानने
देखतां ज अतिशय भक्तिथी नम्रीभूत एवा ईन्द्रे घुंटणभर थईने प्रणाम कर्या; तेनां
नेत्रो अने मुख हर्षथी प्रफूल्लित बन्यां नमस्कार करी रहेला ईन्द्र–ईन्द्राणीना मस्तक
पर पोताना नखना किरणो वडे भगवान जाणे के आशीर्वाद वरसावता हता. अष्टविध
उत्कृष्ट पूजन–सामग्री वडे ईन्द्रोए श्रद्धापूर्वक भगवाननी पूजा करी; ईन्द्राणीए
प्रभुचरण समीपे रंगबेरंगी रत्नोना मंडल पूर्या.–परंतु कृतकृत्य एवा भगवानने ए
बधाथी शुं प्रयोजन हतुं? ए तो वीतराग हता, ए न कोईना उपर प्रसन्न थता, के न
कोईना उपर द्वेष करता; अने छतांय भक्तोने ईष्टफळथी युक्त करी देता हता–ए एक
आश्चर्यकारी वात छे! (भगवानमां परनुं अकर्तृत्व, साक्षीपणुं)