देवोनां ने सूर्यनां तेजने ढांकी देती हती, ने भगवाननो महान प्रभाव प्रगट करती
हती. अहा, अमृतना समुद्र जेवी, अने जगतना अनेक मंगल करनारा दर्पण जेवी,
सात भवो देखता हता.
भव्यजीवोना अज्ञान अंधकारने नष्ट करती हती ने तत्त्वनो बोध करावती हती.
प्रकारनी थई जती हती.–अहा, ए जिनवाणीनी मधुरतानी शी वात!
सर्वज्ञदेव वडे शोभी रह्युं हतुं.
प्रदक्षिणा दईने सभामंडपमां दाखल थया. भगवाननुं श्रीमुख चारे बाजुथी देखातुं हतुं
अर्थात् तेओ चतुर्मुख हता. भगवानने अन्नपाणीनो आहार न हतो, वस्त्र–आभुषण
पण न हतां; ईन्द्रियजन्य ज्ञान पण न हतुं, ज्ञानावरणादि कर्मोना नाशथी तेओ सर्वज्ञ
हता; तेओ मोक्षसृष्टिना सर्जनहार अने पापसृष्टिना संहारक हता. आवा भगवानने
देखतां ज अतिशय भक्तिथी नम्रीभूत एवा ईन्द्रे घुंटणभर थईने प्रणाम कर्या; तेनां
पर पोताना नखना किरणो वडे भगवान जाणे के आशीर्वाद वरसावता हता. अष्टविध
उत्कृष्ट पूजन–सामग्री वडे ईन्द्रोए श्रद्धापूर्वक भगवाननी पूजा करी; ईन्द्राणीए
प्रभुचरण समीपे रंगबेरंगी रत्नोना मंडल पूर्या.–परंतु कृतकृत्य एवा भगवानने ए
बधाथी शुं प्रयोजन हतुं? ए तो वीतराग हता, ए न कोईना उपर प्रसन्न थता, के न
कोईना उपर द्वेष करता; अने छतांय भक्तोने ईष्टफळथी युक्त करी देता हता–ए एक
आश्चर्यकारी वात छे! (भगवानमां परनुं अकर्तृत्व, साक्षीपणुं)