Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
अने वीतरागता होवा छतां भक्तो पोताना उत्तमभावनुं ईष्टफळ पामता हता–एवी
स्वतंत्रता ए एक आश्चर्यकारी वात छे,–के जे जैनधर्ममां ज संभवे.)
त्यारबाद ईन्द्र अत्यंत भक्तिथी स्तुति करवा लाग्यो: हे जिननाथ! आप
गुणरत्नोना खजाना छो, आपना प्रत्येनी भक्ति ईष्टफळ देनारी छे. अमे जडबुद्धि
होवा छतां आपना गुणोनी भक्ति अमने वाचालित करे छे. प्रभो, आपनुं अत्यंत
निर्विकार शरीर ज आपना शान्तिसुखने प्रगट देखाडी रह्युं छे. वस्त्ररहित होवा छतां
आपनुं शरीर सर्वोत्कृष्ट सुंदरताने धारण करी रह्युं छे. प्रभो! आपना कल्याणकोमां देवो
पण दास थईने आपनी सेवा करे छे. मोक्षमार्गरूपी सृष्टिना आप विधाता छो; आप
ज जगतमां मित्र छो, आप ज गुरु छो, आप ज जगतना पितामह छो, आपनुं ध्यान
करनार जीवो अमर एवा मोक्षपदने पामे छे. प्रभो! दिव्यध्वनि वडे आप जगतने
मोक्षना अनंतसुखनो मार्ग देखाडनारा छो. आपे बतावेला मोक्षमार्गमां चालनारा
जीवो परम आनंदने पामे छे. प्रभो! जगतना समस्त पदार्थो जेमां भरेला छे एवी
आपनी दिव्यध्वनि विद्वानोने तरत ज तत्त्वज्ञान करावे छे, ने स्वाद्वादरूपी नीतिवडे ते
अंधमतना अंधकारने दूर करे छे. आपनी वाणी ए पवित्र तीर्थ छे, ने आपे कहेलुं
धर्मरूपी तीर्थ भव्य जीवोने संसारथी पार थवानो मार्ग छे; प्रभो! सर्व पदार्थोने
जाणनारा आप सर्वज्ञ छो; मोहना विजेता छो; धर्मतीर्थना कर्ता तीर्थंकर छो; मुनिओ
आपने ज पुराणपुरुष माने छे. केवळज्ञानरूपी निर्मळ नेत्र आपने प्रगट्युं छे. हे
प्रभो! आप अमारा उपर प्रसन्न थाओ ने अमारी पवित्र स्तुतिनो स्वीकार करो–आ
प्रमाणे भक्तिपूर्वक सेंकडो स्तुति करीने ईन्द्रोए प्रभुचरणोमां मस्तक नमाव्युं, ने
भगवानना श्रीमुख तरफ टगटग जोता सभामंडपमां बेठां. शास्त्रकार कहे छे के अहो!
जिनेन्द्रभगवानना दिव्यवैभवरूप आ आखा समवसरणनी ने मानस्तंभ वगेरेनी हुं
प्रसन्नतापूर्वक स्तुति करुं छुं, वंदना करुं छुं, तथा तेनुं स्मरण करुं छुं.
स्वयंभू भगवान ऋषभदेवनी धर्मसभामां अनुक्रमे बार कोठामां प्रथम
गणधरादि मुनिवरो (२) कल्पवासी देवीओ (३) आर्यिका तथा श्राविकाओ (४)
ज्योतिषी देवीओ (प) व्यंतर देवीओ (६) भवनवासी देवीओ (७) भवनवासी देव
(८) व्यन्तर देव (९) ज्योतिषी देव (१०) कल्पवासी देव (११) मनुष्यो तथा
(१२) तिर्यंचोनी सभा होय छे. धर्मचक्रना अधिपति एवा श्री जिनेन्द्रभगवानना
समवसरण–वैभवनुं जे भव्यजीव भक्तिपूर्वक स्मरण करे छे तथा स्तवन करे छे ते
समस्त गुणोथी भरपूर एवी जिनविभूतिने पामे छे.
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