Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
“भगवान ऋषभदेव”नुं पुस्तक वांचीने घणा बाळकोए पोतानो खूब हर्ष
व्यक्त कर्यो छे; ने बीजुं आवुं साहित्य वांचवा मळे एवी मांगणी करी छे. बंधुओ,
भगवान ऋषभदेवनुं जीवनचरित्र तमे प्रेमथी वांच्युं ने लाभ लीधो ते बदल तमने
धन्यवाद! आवुं साहित्य वांचवानी तमारी भावना जरूर पूरी थशे.
बंधुओ, तमे घणीवार लेख–कविता वगेरे मोकलो छो, ते माटे धन्यवाद! परंतु
तमे मोकलेल लेख–कविता वगेरे आत्मधर्ममां छपावा ज जोईए–एवो आग्रह न
राखवो जोईए; पण छापवा न छापवानी बाबत संपादकनी पसंदगी उपर छोडी देवी
जोईए. आत्मधर्मना उच्च धोरणअनुसार योग्य लेखो छपाता होय छे. कोई लेख
छपातां कदाचित विलंब पण थाय. छपाय के न छपाय तोपण तमे उत्साहथी तमारा
लखाण मोकली शको छो.
नवा प्रश्नो
(१) नीचेनी गाथा शेमां आवे छे? ने ते कोणे बनावी छे?
अहो अहो श्री सद्गुरु करुणासिंधु अपार,
आ पामर पर प्रभु कर्यो अहो अहो उपकार.
(२) गुरुदेव हमणां पुरुषार्थ सिद्धिउपाय वांचे छे; ते शास्त्र कोणे बनाव्युं छे?
(३) नीचेना वाक्यमां शुं भूल छे?
महावीर भगवानने केवळज्ञान थया पछी सौथी पहेलुं चंदनासतीए आहारदान दीधुं.
(४) A तमे हंमेशा भगवानना दर्शन करो छो? B तमे रात्रे खाव छो?
कोयडो:
एक सरस मजानुं तीर्थधाम शोधी काढो, के श्रीकृष्णने जे वहालुं होय, श्रीकृष्ण
ज्यां गया होय; जेनो बीजो ने चोथो अक्षर सरखो होय; ज्यां तीर्थंकर भगवाने दीक्षा
लीधी होय; ज्यां मुनिओ रह्या होय. चार अक्षरनुं आ ऊंचुं तीर्थ, जो तमे जल्दी न
शोधी आपो तो अमे समजशुं के तमे सौराष्ट्रना रहेवासी नहीं!
जवाब मोकलनार सभ्योना नंबर
६१० १९३ ४०१ ११प० ४० ९७८ ११६प १३८६ १ २ ३ ४ प८२ ७पप
१६३१ १३प पप० ३प७ ३१ ४३१ ४३२ १७७२ ६६६ ६६७ ११ १२८६ ३०६ १८०
९० १प२९ १प३० ८७ ७४० १७६प १३३९ १०६ १०७ १६९४ १६९प १६९६
१६९७ १६९८ २९६ १७ ७१८ १३२८ १३०८ १७३३ १७३२ ८१२ ८९१ १३०९ ८८३
८८४ ४११ ८८२ १०४९ ६६२ ८१७ ८१८ ११९ २७७ ८०९ २१९
सूचना:– मुंबईना बालसभ्योना भेट पुस्तक (भगवान ऋषभदेव) दि. जैन
मंदिर–मुंबई मोकलेल छे, तो त्यां तपास करी मेळवी लेवा विनंती छे.