Atmadharma magazine - Ank 284
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९३
आत्मधर्मना नाना–मोटा सर्वे वांचकोने प्रिय
एवो आ विभाग हमणां यात्राप्रवास वगेरे कारणे
केटलाक वखतथी बंध हतो, आ अंके ते चालु थाय छे. आ
विभागमां उपयोगी एवुं लखाण के प्रश्नो आप मोकली
शको
छो. –संपादक
प्रश्न:– आत्मा अनादि छे तेनी साबिती शुं? (सावरकुंडला, नं ७१)
उत्तर:– प्रथम तो सर्वज्ञभगवाने जोयेलो वस्तुस्वभावनो नियम छे के जे
वस्तुनुं अस्तित्व होय ते कदी सर्वथा नाश पामे नहि, ने कदी तेनी उत्पत्ति न थाय,
एटले के भूतकाळमां तेमज भविष्यकाळमां पण ते होय ज. माटे आत्मा अनादि–
अविनाशी छे.
कोईपण प्रयोग द्वारा नवीन जीव उत्पन्न करी शकातो नथी, के एक परमाणु पण
नवो उत्पन्न करी शकातो नथी; वस्तुनी नवी उत्पत्ति जोवामां आवती नथी, मात्र तेनुं
रूपांतर जोवामां आवे छे. कोई मनुष्य मरीने देव थयो–त्यां खरेखर मनुष्यनो जीव
मर्यो नथी ने देवनो जीव नवो थयो नथी, पहेलां जे जीव हतो तेनुं ज रूपांतर थयुं छे.
ने ते जीव पोते पण अनुभवी शके छे के पहेलां हुं मनुष्य हतो ने अत्यारे हुं देव छुं;
एटले के मनुष्य अने देव बंने वच्चे सळंग रहेनार हुं नित्य छुं.
अनेक जीवोने पूर्वभवना संस्कारो, तेमज पूर्वभवनुं प्रमाणभूत जातिस्मरण
ज्ञान अत्यारे पण जोवामां आवे छे. आ सिवाय शास्त्रअनुसार पोते पोताना अंतरमां
विचार करतां पण लक्षमां आवी शके छे के हुं कायम टकनार छुं. आत्मानी नित्यता
संबंधमां बीजा केटलाय न्यायो शास्त्रना अभ्यासथी जाणी शकशो. श्रीमद्राजचंद्रजीनी
‘आत्मसिद्धि’ मां गा. प९ थी ७० (तथा तेना प्रवचनो) पण आ संबंधमां उपयोगी
थशे.
प्रश्न:– जीव क्यां रहेतो हशे? (जयेन्द्र जैन. जमशेदपुर)
उत्तर:– ‘जीव क्यां हशे?–एवो प्रश्न जे ठेकाणेथी ऊठ्यो, त्यां ज जीव रहे