Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : ९ :
तेमनी आत्मिक–आराधनानी पवित्र कथा
भगवत् जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले. ब्र. हरिलाल जैन
[लेखांक–१४]
– * –
जेमना दश अवतारनी पवित्रकथा हवे पूर्णता तरफ
पहोंची रही छे एवा आपणा चरित्रनायक भगवान ऋषभदेव
जयवर्मा अने महाबलना भवमां जैनधर्मना संस्कार पाम्या;
त्यांथी ललितदेव थईने पछी वज्रजंघ राजा थया ने वनमां
मुनिओने आहारदान कर्युं. (ते वखते भरत–बाहुबली वगेरेना
जीवोए तथा चार तिर्यंचोए तेनी अनुमोदना करी.) त्यांथी
भोगभूमिमां उपजीने छ जीवो सम्यग्दर्शन पाम्या. पछी
श्रीधरदेव, सुविधिराजा अने अच्युतईन्द्र थईने वज्रनाभी
चक्रवर्ती थया...११ मा गुणस्थाने देह छोडी सर्वार्थसिद्धिमां गया
ने पछी अयोध्यामां ऋषभदेवपणे अवतरीने
पुरितमालनगरीमां केवळज्ञान पाम्या छे, समवसरण रचायुं
छे...चालो, आपणे पण त्यां पहोंची जईए.
भगवान ऋषभदेवना केवळज्ञानना मंगलसमाचार विश्वभरमां प्रसरी गया... ने
भव्य जीवोना टोळेटोळा समवसरण तरफ आववा लाग्या. भगवानना केवळज्ञाननो उत्सव
उजववा अयोध्याथी रवाना थयेली भरत महाराजानी सवारी ठाठमाठ सहित
पुरितमालनगरीमां समवसरण समीप आवी पहोंची. बधा कार्योमां सौथी पहेलुं धर्मनुं कार्य
करवुं जोईए–एम समजनारा भरते, चक्ररत्न तथा पुत्रजन्मना उत्सव पहेलां भगवानना
केवळज्ञाननी पूजा करवानो निश्चय कर्यो हतो. बाहुबली वगेरे नाना भाईओ, अनेक
राणीओ, पुत्रो, तथा मुख्य नगरजनो पण साथे हता; आनंदनां वाजां वागता हता.
भरतराजाए पहेलां समवसरणनी प्रदक्षिणा करी ने मानस्तंभनी पूजा करीने आगळ
वध्या. आठभूमि तथा त्रण कोटनी आश्चर्यकारी शोभा नीहाळता पीठिका पासे पहोंच्या,