
देवने देख्या. अहा, अष्ट प्रातिहार्यना वैभवयुक्त भगवानने नीहाळतां महा
आनंदपूर्वक भरते तेमनी पूजा करी अने बंने घूंटण जमीन पर राखीने नमस्कार कर्या;
तथा स्तुति करवा लाग्या: हे प्रभो! आप धर्मना नायक छो, आप मोक्षमार्गना नेता
छो, आत्मस्वरूपने जाणनाराओना आप ध्येय छो. ईन्द्रियो विद्यमान होवा छतां आप
अतीन्द्रिय छो; विषय–कषायरहित संपूर्ण सुख आपने प्रगट्युं छे. प्रभो! आप तो
अनंतगुणसम्पन्न छो, अमे अल्पबुद्धिजीवो आपना पवित्र गुणोनुं स्तवन कई रीते
करी शकीए? आपना गुणोनी स्तुति तो दूर रही, आपनुं नाम पण अमने पवित्र करे
छे.–ईत्यादि प्रकारे १०८ नामोवडे स्तुति करी. हे प्रभो! आपने ज ईष्टदेव मानीने अमे
आपनी ज उपासना करीए छीए, ने आपे देखाडेलो मोक्षमार्ग उपासीने मोक्ष प्राप्त
करवा चाहीए छीए.
तत्त्वनुं स्वरूप जाणवानी ईच्छाथी भगवाननी दिव्य वाणी सांभळवा माटे हस्तांजलि
जोडीने शांत थई गई. त्यारे महाराजा भरते विनयपूर्वक भगवानने प्रार्थना करी: हे
भगवान! तत्त्वो केटला छे? मोक्षनो मार्ग शुं छे? ने ते मार्गनुं फळ शुं छे? हे श्रेष्ठ
तत्त्ववेत्ता! ते हुं आपनी पासेथी सांभळवा चाहुं छुं.
मुखमां कोई फेरफार (होठनुं हलनचलन वगेरे) थतो न हतो,–शुं पदार्थोने प्रकाशीत
करती वखते दर्पणमां विकार थाय छे?–नहि. प्रयत्न विना सर्वांगेथी ए
वीतरागवाणीनो धोध वहेतो हतो. जेम पर्वतनी कोई ऊंडी गूंफामांथी अवाज आवतो
होय एम प्रभुनी दिव्यध्वनि अति गंभीर हती. अहो, तीर्थंकरादि महापुरुषोनुं योगबळ
ने एमनी प्रभुता कोई अचिन्त्य होय छे!