Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
बे प्रकारनां छे. जेमां चेतना एटले के जाणवा–देखवानी शक्ति छे ते जीव छे; ते
अनादि–अनंत छे, उत्पत्ति–विनाशरहित छे, उपयोगस्वरूप छे, स्वकर्मनो कर्ता छे, तेना
शुभाशुभ फळनो भोक्ता छे, शरीरप्रमाण असंख्यप्रदेशी अरूपी छे. अनंतगुणसम्पन्न
छे, लोकाग्र सुधी ऊर्ध्वगमनस्वभावी छे, संसारदशामां संकोचविस्ताररूप परिणमे छे;
जीवनुं संशोधन करवा माटे गति वगेरे १४ मार्गणाओ पण भगवाने विस्तारथी
बतावी; जीवनी पर्यायना १४ गुणस्थानो बताव्या; ओपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक,
औदयिक अने पारिणामिक–ए पांच खास भावो जीवनां निजतत्त्व छे, तेमनुं स्वरूप
ओळखाव्युं. जीवनुं लक्षण उपयोग छे. एवा उपयोगलक्षणरूप जीवने ओळखीने तेनुं
यथार्थ श्रद्धान करवुं जोईए. जीव, उपरांत प्राणी, जंतु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान, आत्मा,
अंतरात्मा, ज्ञ अने ज्ञानी ए पण जीवनां ज नामो छे. द्रव्यथी ते नित्य छे ने पर्यायथी
ते उत्पत्ति–विनाश सहित अनित्य छे. आत्मा सत् वस्तु छे, ते सर्वथा अभावरूप नथी.
तेम ज सर्वथा नित्य के सर्वथा अनित्य पण नथी; ते सर्वथा अकर्ता के अभोक्ता पण
नथी, तेने संसार छे ने ते संसारथी छूटीने मोक्ष पण थाय छे. ते मोक्षनो उपाय पण छे.
कुमार्ग छोडीने आवा जीवतत्त्वनो निश्चय करवो जोईए.
वळी भगवाननी दिव्यदेशनामां एम आव्युं के–जीवनी नरक तिर्यंच मनुष्य ने
देव ए चारे गति ते संसारअवस्था छे; अने रत्नत्रयद्वारा समस्त कर्मोनो अत्यंत क्षय
थतां जे अनंत सुखस्वरूप सिद्धगति प्रगटे छे ते मोक्षदशा छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–
सम्यक्चारित्र एवा रत्नत्रयरूप साधनवडे तेनी प्राप्ति थाय छे. आवा जीवादि तत्त्वोनुं
तथा साचा देव–शास्त्र–गुरुनुं अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक श्रद्धान् करवुं ते सम्यग्दर्शन छे;
आ सम्यग्दर्शन मोक्षप्राप्तिनुं पहेलुं साधन छे. जीवादि पदार्थोना यथार्थस्वरूपने प्रकाशीत
करनारुं ने अज्ञान–अंधकारनो नाश करनारुं जे ज्ञान छे ते सम्यग्ज्ञान छे. ईष्ट–अनिष्ट
पदार्थोमां समताभाव धारण करीने निजस्वरूपमां चरवुं–एवा माध्यस्थलक्षणरूप
सम्यक्चारित्र छे. आ सम्यक्चारित्र यथार्थपणे तृष्णारहित, मोक्षार्थी, वस्त्ररहित अने
अहिंसक एवा मुनिने ज होय छे. आ सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्ररूप
रत्नत्रयनी पूर्णता ते मोक्षनुं कारण छे; तेमांथी एक्केय ओछुं होय तो ते पोताना कार्यने
(मोक्षने) साधी शकतुं नथी. सम्यग्दर्शन होय तो ज ज्ञान ने चारित्र सफळ छे.
सम्यग्दर्शन रहित चारित्र कंईपण कार्यकारी नथी,–परंतु ते तो अंधपुरुषनी दोड समान
छे. ए ज रीते