
मोक्षमार्ग भगवाने बताव्यो.
जेओ अनंत–ज्ञानादि गुणोसहित सर्वज्ञ छे, जेमणे मोहादि कर्मकलंक धोई नांख्या छे,
जेओ निर्मळताना भंडार छे ने निर्मळ जेमनो आशय छे, सौना हितोपदेष्टा छे–एवा
वीतराग जिनदेव ते ‘आप्त’ छे, ते ज ईष्टदेव छे. एवा आप्तपुरुषनी वाणी के जे संपूर्ण
पुरुषार्थने उपदेशनारी छे ने नयप्रमाणोथी गंभीर छे ते ‘आगम’ छे. तेमां कहेलां
अनेकान्तस्वरूप जीवादि पदार्थो ते तत्त्वो छे. आवा आप्त–आगम ने तत्त्वने बराबर
ओळखवा जोईए. जीव–अजीव आदि पदार्थो पोतपोताना गुण–पर्यायरूपे परिणमन
करे छे; समस्त पदार्थोमां परिणमन स्वयमेव थाय छे, अने काळद्रव्य तेमां
सहकारीकारण छे.–आवा पदार्थस्वरूपने जे जाणे छे ते परमब्रह्म पदने पामे छे.
तेना मार्गरूप रत्नत्रयनुं, बंध अने बंधनां कारणोनुं, संसारी अने मुक्तजीवनुं,
त्रणलोकनी रचनानुं, स्वर्ग–नरक ने द्वीप–समुद्र वगेरेनुं, तीर्थंकरो–चक्रवर्तीओ
वगेरेना चरित्रनुं, तीर्थंकरोना कल्याणकोनुं, गुणस्थान–मार्गणास्थाननुं, गति–
आगतिनुं तथा मुनिओनी ऋद्धि वगेरेनुं निरूपण कर्युं. सर्वने जाणनारा ने सर्वनुं
कल्याण करनारा भगवान ऋषभदेवे भूत–भविष्य–वर्तमान त्रणेकाळसंबंधी समस्त
द्रव्योनुं संपूर्ण स्वरूप बताव्युं.
झीलनारा श्रोताओना आनंदनी शी वात!! भगवाने कहेलुं तत्त्वस्वरूप सांभळीने
भरतराज अने बारे सभाना जीवो परम आनंदने पाम्या. दिव्यध्वनिद्वारा धर्मरूपी
अमृतनुं पान करीने बधा जीवो परम हर्षथी संतुष्ठ थया. परम आनंदित थईने
भक्तिनिर्भर एवा भरतराजा भगवान समीपे सम्यक्त्वनी शुद्धि तेम ज अणुव्रतोनी
परमविशुद्धिने पाम्या.