Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
चार तीर्थरूप चतुर्विधसंघनी स्थापना
ए ज वखते, भरतना नानाभाई वृषभसेन–के जे आ पुरितमाल नगरीना
राजवी हता, तथा जे प्राज्ञ, शूरवीर, पवित्र, धीर–गंभीर ने अतिशय बुद्धिमान हता
तेमणे पण भगवानना प्रथम उपदेशथी संबोधित थईने भगवानना चरणोमां
मुनिदीक्षा धारण करी ने तेओ भगवानना प्रथम गणधर थया; भगवानना जे पुत्र
हता ते ज तेमना धर्मपुत्र (गणधर) थया;
ने सात ऋद्धि तथा चार ज्ञानवडे शोभी
ऊठया; आ उपरांत आहारदान देनारा राजा सोमप्रभ, श्रेयांसकुमार तथा अन्य
राजाओ पण दीक्षा लईने भगवानना गणधर थया. भगवाननी पुत्री अने भरतनी
नानी बहेन ब्राह्मीदेवी पण भगवान समीप दीक्षित थईने आर्यिकाओना संघना
गणिनी बन्या, देवोए पण तेनी पूजा करी. भगवाननी बीजी पुत्री ने बाहुबलीनी
सहोदरा सुंदरीदेवीए पण प्रभुचरणोमां वैराग्यपूर्वक दीक्षा लीधी; बीजा पण केटलाय
राजाओ, राजकुमारो ने राजपुत्रीओए संसारथी भयभीत थईने दीक्षा धारण करी.
श्रुतकीर्ति नामना अतिशय बुद्धिमान पुरुषे श्रावकव्रत ग्रहण कर्या, ने देशव्रती
श्रावकोमां ते श्रेष्ठ थया; ए ज रीते पवित्र अंतःकरणवाळी सती प्रियव्रता
श्राविकानां व्रत धारण कर्या ने श्राविकाओमां ते श्रेष्ठ थई. आ रीते भगवान
ऋषभदेवना शासनमां आ भरतक्षेत्रमां मुनि–अर्जिका–श्रावक ने श्राविकारूप
चतुर्विधसंघनी स्थापना थई.
मोक्षना दरवाजा खुल्या
भगवाननी साथे दीक्षा लेनारा जे ४००० राजाओ भ्रष्ट थई गया हता तेमांना
एक मरीचि सिवायना बीजा बधा तपस्वी–राजाओ भगवान ऋषभदेवना उपदेशथी
तत्त्वनुं यथार्थ स्वरूप समजीने फरीथी दीक्षित थया ने भावलिंगी मुनि थया. बीजा
अनेक उत्तम राजाओए पण दीक्षा लीधी; तेमां भगवानना पुत्र अनंतवीर्य (भरतना
भाई) पण भगवान पासे दीक्षा लईने, अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगटावी आ
अवसर्पिणी युगमां सौथी पहेला मोक्ष पाम्या. देवोए पण तेमनी पूजा करी. आ रीते
भगवाननी दिव्यध्वनि शरू थतां भरतक्षेत्रमां मोक्षनां दरवाजा खुल्यां.
* * *
महाराजा भरत परमभक्तिपूर्वक भगवान ऋषभदेवनी पूजा करीने, तेमना
केवळज्ञाननो उत्सव करीने, तेमनी दिव्यवाणीनुं श्रवण करीने अने पोतामां
दर्शनविशुद्धि