
पाछा फर्या; तेमनी साथे साथे बाहुबली वगेरे नाना भाईओ पण आनंदपूर्वक
जगतगुरुनी वंदना करीने पाछा फर्या.
अने मन प्रसन्न थई रह्युं छे एवा सौधर्म–ईन्द्रे स्थिरचित्ते भगवाननी स्तुति शरू करी:
हे प्रभो! मारी बुद्धिनी मंदता होवा छतां मात्र भक्तिथी प्रेराईने हुं गुणरत्नोनी खाण
एवा आपनी स्तुति करुं छुं; आपनी स्तुतिवडे उत्तमफळ स्वयं प्राप्त थाय छे. पवित्र
गुणोनुं कीर्तन करवुं ते स्तुति छे, प्रसन्नबुद्धिवाळो भव्यजीव स्तुति करनार (स्तोता)
छे, सर्वगुणसम्पन्न एवा आप सर्वज्ञदेव स्तुत्य छो, अने मोक्षसुखनी प्राप्ति ते स्तुतिनुं
फळ छे. हे भगवान! आ रीते आपनी स्तुति करनार एवा मने आप आपनी
प्रसन्नद्रष्टिवडे पवित्र करो. प्रभो! आपनी भक्ति मने आनंदित करी रही छे तेथी हुं
संसारथी उदासीन थईने आपनी स्तुतिमां लीन थयो छुं. हे देव! राग–द्वेषरहित एवा
आपनुं शरीर वस्त्राभूषण वगर ज सर्वोत्कृष्टपणे शोभी रह्युं छे; आपे क्रोध कर्या वगर
ज मोहशत्रुने हणी नांख्यो; आपनी प्रभुत्वशक्ति महान आश्चर्यकारी छे. प्रभो!
आपनी वीतरागद्रष्टि अमने पवित्र करी रही छे. जेमांथी दिव्यवाणीरूपी अमृत झरे छे
ने भव्यजीवोने जीवन आपे छे एवुं आपनुं श्रीन्मुख, जाणे के धर्मनो खजानो होय एवुं
शोभी रह्युं छे; अने आ पण एक आश्चर्यनी वात छे के आपनी वाणीमां एक साथे
अनेक प्रकारनी भाषाओ उत्पन्न थाय छे, आपना तीर्थंकरत्वनो ज ए कोई अचिंत्य
महिमा छे. आपना आत्मानी तो शी वात, आपना देह अने वाणी पण एवा
असाधारण छे के जगतने आनंदित करे छे. प्रभो! आपनुं आ समवसरणरूपी विमान
पृथ्वीने नहि स्पर्शतुं थकुं सदा आकाशमां ज विद्यमान रहे छे; आपनी समीप १००
योजनमां क््यांय दुष्काळ वगेरे उपद्रव होतो नथी; सिंह–वाघ जेवा हिंसक प्राणीओ पण
आपनो धर्मोपदेश सांभळीने अहिंसक बनी जाय छे; प्रभो! घातीकर्मोने नष्ट कर्या
होवाथी असाता वेदनीय आपने फळ आपी शकतुं नथी. तेथी नथी तो आपने क्षुधा, के
नथी आहार. आप तो अनंत अतीन्द्रिय सुखना भोक्ता छो. प्रभो! आपने देखतां
देवोने एटलो आनंद थाय छे के एमनां नेत्रो पलकार पण मारतां नथी. प्रभो, आप
आपना