: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : १प :
आत्मामांथी आत्मावडे ज स्वयंभू सर्वज्ञपणे प्रगट थया छो ने आपनो महिमा
अचिंत्य छे, तेथी आपने नमस्कार हो.
भगवाननी स्तुति करतां सौधर्मईन्द्र कहे छे के हे नाथ! आपना गुणो अनंत
छे; ए अनंतगुणोनुं स्तवन तो दूर रहो, परंतु आपनां १००८ लक्षणो अतिशय प्रसिद्ध
छे, तेथी हुं आपनां एक हजार आठ मंगल नामोद्वारा आपनी स्तुति करुं छुं. आम
कहीने ईन्द्रे ‘श्रीमान्’ थी शरू करीने ‘धर्मसाम्राज्यनायक’ सुधीनां १००८ नामोथी
भगवाननुं स्तवन कर्युं.
१. हे प्रभो! जगतना अद्वितीय–प्रकाशक होवाथी आप एक छो.
२. एकसाथे ज्ञान–दर्शनरूप बे उपयोगना धारक होवाथी आप बे रूप छो.
३. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र एवा त्रिविध मोक्षमार्गमय होवाथी त्रिरूप छो.
४. आत्मामां उत्पन्न एवा अनंत चतुष्टयस्वरूप होवाथी चाररूप छो.
प. पंचपरमेष्ठीस्वरूप होवाथी तथा पंचकल्याणकना नायक होवाथी पांचरूप छो.
६. जीवादि छ द्रव्योना ज्ञाता होवाथी आप छ रूप छो.
७. नैगमादि सात नयोना संग्रहरूप होवाथी आप सातरूप छो.
८. सम्यक्त्वादि आठ अलौकिक गुणस्वरूप होवाथी आठरूप छो.
९. केवळज्ञानादि नव क्षायिकलब्धिसहित होवाथी आप नवरूप छो.
१०. महाबल आदि दश अवतारवडे आपनो निर्धार थतो होवाथी दशरूप छो.
एवा हे ऋषभजिनेश्वर! आ भवदुःखोथी मारी रक्षा करो.
ए प्रमाणे स्तुति कर्या बाद ईन्द्रे भगवानने तीर्थविहार माटे प्रार्थना करी: हे प्रभो!
भव्यजीवोने धर्मरूपी अमृतनुं सींचन करवा माटे आप शरणरूप थाओ. मोहनी सेनाने
नष्ट करीने केवळज्ञान पाम्या पछी हवे मोक्षमार्गनो उपदेश देवानो समय पाकी गयो छे, ने
आपना श्री विहार माटे आ धर्मचक्र पण तैयार छे. माटे हे जिनेश्वर! मंगलविहारवडे आ
भरतभूमिने पावन करो ने मोक्षमार्गना उपदेशवडे धर्मतीर्थनुं प्रवर्तन करो.
त्यारे, तीर्थंकर नामनी पुण्यप्रकृति जेने सारथि छे एवा श्री भगवाननो विहार
थयो; भगवानने कंई ईच्छा न हती पण भव्य जीवोना महाभाग्ये एमनो सहज
विहार थयो. छत्र, चामरादि दिव्य विभूति पण साथे ज हती. ईन्द्रादि देवोए
भगवानना विहारनो