Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : १७ :
(अंक २८४ थी चालु) * (लेखांक प१)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
जेम व्रतादिना विकल्पो मोक्षनुं कारण नथी तेम मुनिलिंगनो विकल्प पण मोक्षनुं
कारण नथी–एम हवे आचार्यदेव प्रतिपादन करे छे:–
लिगं देहाश्रितं द्रष्टं देह एवात्मनो भवः।
न मुच्यते भवात्त स्मात्ते ये लिंगकृताग्रहाः।।८७।।
लिंग देहाश्रित छे, अने देहमां आत्मबुद्धि ते ज संसार छे. तेथी जेओ देहादि
लिंगमां के रागादिमां ममत्वबुद्धि करे छे तेओ संसारथी छूटता नथी.
समयसारमां आचार्यदेव कहे छे के आत्माने देह ज नथी, तो पछी देह के
देहाश्रित भावो मोक्षनुं कारण केम होय? पंच महाव्रतादि मुनिलिंगने के अणुव्रतादिना
शुभरागरूप गृहस्थी लिंगने आत्मानुं स्वरूप मानीने अज्ञानी तेने मोक्षमार्ग माने छे,
पण ते लिंग मोक्षमार्ग नथी; कारण के अर्हंतदेवो देह प्रत्ये निर्मम वर्तता थका लिंगने
(महाव्रतना विकल्पने) छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ज सेवे छे. भगवाने तो
शुद्धज्ञाननी उपासना वडे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग सेव्यो ने एवो ज
मोक्षमार्ग उपदेश्यो. द्रव्यलिंग तो शरीराश्रित होवाथी परद्रव्य छे, तेथी ते मोक्षमार्ग
नथी; सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज मोक्षमार्ग छे, कारण के ते आत्मश्रित छे. माटे हे
भव्य! बाह्यलिंगनुं ममत्व छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गमां ज तारा
आत्माने जोड.
‘जेने लिंगकृत आग्रह छे ते मोक्ष पामतो नथी,’–पण एनो अर्थ एवो नथी के
दिगंबर लिंग सिवाय बीजा गमे ते लिंगमां पण मोक्ष थई जाय. मोक्ष पामनारने