
लिंगकृत आग्रह नथी; पण अंतरमां चैतन्यतत्त्वनी आराधना तो जे करतो नथी
अने शरीरनी दिगंबरदशा थई तेने ज मोक्षनुं कारण माने छे ते जीवने लिंगकृत
आग्रह छे; शरीर संबंधी विकल्प छोडीने ज्यारे स्वरूपमां ठरशे त्यारे ज मुक्ति
मोक्षनुं कारण तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज थशे. माटे अरिहंत भगवंतोए देहनुं
ममत्व छोडीने रत्नत्रयनी ज मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे; ने तेनो ज उपदेश
दीधो छे.
ते जीव शरीरथी छूटी शकतो नथी, एटले के संसारथी छूटी शकतो नथी, ने अशरीरी
सिद्धपद पामतो नथी.
विकल्प (के जे मोक्षमार्गनां बाह्य लिंग छे) तेने जे मोक्षमार्ग माने, तेने पण लिंगनो
आग्रह छे, शरीरनुं ममत्व छे. जेने शरीरनुं ममत्व छे ते शरीरथी छूटीने अशरीरीदशा
क््यांथी पामशे? भाई, आ शरीर ज तारुं नथी पछी एमां तारो मोक्षमार्ग केवो? देहने
जे मोक्षनुं साधन माने तेने देहनुं ममत्व होय ज.–जेने मोक्षनुं साधन माने तेनुं ममत्व
केम छोडे? मुनिदशामां शरीर नग्न ज होय ए खरूं छे,–पण मुनिदशा कांई ए नग्न
शरीरना आश्रये नथी, मुनिदशा तो शुद्धआत्माना ज आश्रये छे. शुद्ध आत्माने जे नथी
जाणतो तेने मुनिदशा होती नथी.
जे दशामां जेवो राग न होय तेवा निमित्त पण होतां नथी. जेम सर्वज्ञने आहारनी
ईच्छा नथी तो बहारमां पण आहारनी क्रिया नथी, तेम मुनिने परिग्रहनो भाव
नथी तो बहारमां पण वस्त्रादि परिग्रह होतो नथी. एवो मेळ सहजपणे होय छे.
राग छूटतां तेनां निमित्तो पण सहेजे छूटी जाय छे. छतां धर्मीने ते बाह्य
निमित्तमां कर्तृत्व नथी.