Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
उत्तर:– मुनिदशामां वस्त्रादि माने तेने तो निमित्तनी पण खबर नथी, तेने तो मोटी
भूल छे. मुनिदशामां दिगंबर शरीर ज निमित्तपणे होय छे.–परंतु जेओ ते दिगंबरलिंगने
मोक्षनुं कारण माने छे तेओ पण निमित्ताधीन द्रष्टिने लीधे संसारमां ज रखडे छे.
देहद्रष्टिथी तो संसार ज छे; देहद्रष्टिवाळाने मुक्ति थती नथी अने जेओ देहनी
दशाने मोक्षनुं कारण माने छे तेओ देहद्रष्टिवाळा ज छे. देहने मोक्षनुं कारण माननारा
संसारना ज आग्रही छे; निमित्तना आश्रये मुक्ति माननारा निमित्तना आग्रही छे, ने
निमित्तना आग्रही ते संसारना ज आग्रही छे. देह ते मोक्षनुं कारण छे–एवो मिथ्या
आग्रह छोडीने, चैतन्यस्वरूपने श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता वडे जेओ आराधे छे तेओ ज
मुक्ति पामे छे. अर्हंत भगवंतो पण देहाश्रित लिंगनो विकल्प छोडीने, रत्नत्रयनी
आराधना वडे ज मुक्ति पाम्या छे; माटे ते ज मुक्तिनो मार्ग छे, लिंग ते मुक्तिनो मार्ग
नथी–एम निःशंक जाणवुं.
।। ८७।।
हवे लिंगनी जेम उत्तम जाति के कूळ ते पण देहाश्रित छे, ते मोक्षनुं कारण नथी;
तेथी, ‘अमे ब्राह्मण, अमे क्षत्रिय, अमे वैश्य,–अमारुं उत्तमकुळ ने उत्तम जाति छे ते ज
मोक्षनुं कारण छे’–एम जेओ माने छे तेओ पण मुक्ति पामता नथी एम आचार्यदेव
कहे छे–
जातिर्देहाश्रिता द्रष्टा देह एवात्मनो भव।
न मुच्यते भवात्तस्मात्ते ये जातिकृताग्रहा।।८८।।
जाति तो शरीराश्रित छे, ते जातिने ज आत्मानुं स्वरूप जे माने छे ते देहने ज
आत्मा माने छे, एटले ‘हुं वाणियो छुं, हुं क्षत्रिय छुं’–एम तेने जातिकृत आग्रह छे, ते
जीव पण भवथी छूटतो नथी. देह साथे एकत्वबुद्धि राखे ते जीव देहना संयोगथी केम
छूटे? भाई! वाणियो के ब्राह्मण वगेरे जाति ते तारी खरी जात नथी, तारी खरी जात
तो चैतन्यजात छे, चेतना ज तारुं खरुं स्वरूप छे; तारी चैतन्य जातने ओळख तो
तारी मुक्ति थाय.
धर्मी जाणे छे के अमे तो देहथी भिन्न आत्मा छीए, चैतन्य ज अमारी जाति
छे; क्षत्रिय वगेरे जाति तो देहाश्रित छे. देहनी जाति ते अमे नथी. चैतन्य ज अमारी
उत्तम जाति छे, ने तेनी आराधना करवी ते ज अमारी उत्तम कुळपरंपरा छे.–आवा
भानपूर्वक जाति अने कुळना विकल्पो छोडीने धर्मात्मा पोताना चैतन्यस्वरूपनी
आराधनाथी मुक्ति पामे छे.
जुओ, शरीरनी उत्तम जाति के कुळ ते मोक्षनुं कारण नथी–एम अहीं कह्युं, तेथी
‘गमे ते जाति होय–चांडाळ कुळमां जन्म्यो