Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
घणा प्राचीन अने ध्यानप्रेरक अद्भुत प्रतिमा छे. गुरुदेवने ते बहु गम्या छे. बंधुओ, तमे
आ बाजु आवो त्यारे जरूर एनां दर्शन करजो ने मारा गाम पण आवजो.
* जेतपुरथी मुकेशकुमार जैन (No. 185) बालविभागना मित्रोने लखे छे के
––प्रिय बंधुओ, तमे वेकेशन सुंदर रीते वीताव्युं ते संबंधी तमारा पत्रो आत्मधर्मना गतांकमां
वांचीने घणो आनंद थाय छे. ते बदल सौने अभिनंदन! में पण वेकेशनमां आत्मसिद्धि,
‘श्रीमदराजचंद्र’ , तथा ऋषभदेवना दस अवतार वगेरे पुस्तको वांचीने तेमांथी ज्ञान मेळव्युं.
‘आत्मधर्म’ तो वांचवानुं होय ज बंधुओ, “तमारा पत्रमां तमे वेकेशनमां जे जुदा जुदा गामो
ने जोवालायक स्थळो जोया तेनुं वर्णन लख्युं नथी–तो ते बराबर छे?” (जी हा! भाईश्री,
आपणे धार्मिक द्रष्टिए शुं कर्युं–तेने ज लगता पत्रो लखवानुं सूचव्युं छे. शहेरो अने
जोवालायक स्थळोना वर्णननी आपणे शी जरूर छे? एटले कदाच कोईए ते लख्युं होय तो
पण ते भाग काढी नांखेल छे. हा, तीर्थस्थळोनुं वर्णन होय तो उपयोगी गणाय.–सं.) आगळ
जतां पत्रलेखक भाई लखे छे के– बाळकोना जीवनमां अत्यारथी ज जे प्रेम अने लागणी
जाग्या छे ते देखीने अत्यंत आनंद उपजे छे. रजाओमां बालमित्रोए राजकोट जईने धार्मिक
अभ्यास कर्यो तेनुं वर्णन वांचीने घणो आनंद थयो. आ बधो प्रताप गुरुदेवनो ज छे. गुरुदेव
आपणने मोक्षप्राप्तिनो मार्ग बतावे छे. तेमज आपणा आत्मधर्मनो बालविभाग आपणा
जेवा हजारो बाळकोमां बचपणथी ज धर्मना संस्कारो रेडवा जे अथाग प्रयत्नो करे छे तेनो
पण आपणे सौ आभार मानीए. गुरुदेवनो फोटो तथा धार्मिक पुस्तको वगेरे मळतां आपणो
उत्साह वधे छे ने आनंद थाय छे. आ ‘पत्रलेखन–योजना’ पण आनंदकारी छे ने धर्मनो
उत्साह आपे छे.–बंधुओ, फरीने पण आवा पत्रद्वारा कोईवार मळीशुं. –जयजिनेन्द्र
* प्रांतिजथी वसंतकुमार जैन (No. 1003) लखे छे के––अमे उनाळानी
रजाओनो सदुपयोग कर्यो छे. अमारा अलुवा गाममां भगवाननी प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक
महोत्सव हतो, तेमां अमे घणा आनंदथी भाग लीधो. बे हाथी आवेला, ने रोज साबरमती
नदी सुधी वरघोडो जतो. पूजा वगेरे दरेक कार्योमां अमे भाग लेता. ऋषभदेव प्रभुना
जन्मकल्याणक वगेरेनां द्रश्यो जोई आनंद थतो. अमे पण मेरू उपर जई भगवाननो
अभिषेक कर्यो हतो. प्रभुजीने पधराव्या पछी झगझगाट करतुं मंदिर बहु शोभतुं हतुं. आ
रीते उत्सवमां भाग लईने अमे अमारी धार्मिक भावनामां वधारो कर्यो. –जयजिनेन्द्र
सांगली (महाराष्ट्र) थी आशाकुमारी जैन (No. 138) लखे छे के––
महाराष्ट्रमां आव्या ने अमने १८ वर्ष थया. पहेलेथी ज भगवाननी पूजा–भक्ति करवानी
टेव छे. अहीं मुमुक्षुमां अमारुं एक ज घर छे, तेथी ‘आत्मधर्म’ अने बीजा धर्मपुस्तको
वांचीने शक्ति अनुसार ग्रहण करुं छुं. घणा वखतथी गुरुदेवनी जन्मजयंति जोवानी ईच्छा
हती; ते आ वखते रजाओमां पूरी थई गुरुदेवनी जन्मजयंती मारी जन्मभूमि (बोटाद) मां
ज उजववानुं आत्मधर्ममां वांचीने घणो उल्लास थयेलो ने रजामां अमे बोटाद आवीने खूब
ज लाभ लीधो. आवो आनंद