
ओळखवानी वातो अमने बहु गमी. आ रीते रजानो उपयोग कर्यो.
जन्मदिवसनी रथयात्रामां मने अनेरो आनंद प्राप्त थयो. गुरुदेवश्रीना तेमज भगवती
माताओना दर्शननो ने मुमुक्षुओना सत्समागमनो लाभ मळ्यो. पछी अमदावाद आवीने में
आत्मसिद्धिनी गाथाओ, बहु पुण्य केरा पुंजथी वगेरे काव्यो मोढे कर्या. हंमेश दर्शन करवा तथा
शास्त्रवांचनमां जतो. में रोज दर्शन करवानी अने धार्मिक वांचन करवानी प्रतिज्ञा लीधी. हवे
पर्युषणमां जरूर सोनगढ जईशुं.
नवअधिकार सरस रीते समजावता हता. बपोरे गरमी खूब पडती, छतां प्रवचनमां माणसो
खूब आवता. अमे सवार–बपोर–राते त्रणे वखत लाभ लेता. त्यार पछी ८ दिवस सोनगढ
पण जई आव्या. गुरुदेव अनुभवनुं स्वरूप समजावता हता; तथा पुरुषार्थ सिद्धिउपायमांथी
हिंसा–अहिंसानुं साचुं स्वरूप समजावता हता;–रागद्वेषनी उत्पत्ति थवी ते हिंसा; अने राग–
द्वेषनी उत्पत्ति न थवी ते अहिंसा. समयसारना पुण्य–पाप अधिकारमां वारंवार समजावता
हता के पुण्यथी मुक्ति छे ज नहि; शुभभाव वच्चे आवे पण ते हेय छे; शुद्धात्मा ज ग्रहण
करवा जेवो छे. पुण्य अने पाप बंने खरेखर एक जातिना (विभाव) छे. सोनगढनुं तो
वातावरण जोईने मन शान्त थई जाय छे; गुरुदेवनी सरस वातो सांभळतां एम ज थतुं के
अहीं ज रही जईए. गुरुदेवना सत्संगमां आटला दिवस रहेवानो आवो सरस कार्यक्रम तो
कोई फेरे नहोतो बन्यो.–आ रीते वेकेशनमां आनंदथी लाभ लीधो.