Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
–ए कडी ज्यारे गुरुदेव बोलता त्यारे आ मोंघा मानवजीवननां साचा मूल्यो समजाता.
आम मारा जन्मस्थान (बोटाद) मां मारा रजाना दिवसो आनंदथी पसार थई गया.–जयजिनेन्द्र
* विनयचंद्र जैन (No. 885) पण अमदावादथी लखे छे के––रजाओमां
बोटादमां गुरुदेवनी जन्मजयंती उजवी. मारुं जन्मस्थान बोटाद होवाथी हुं त्यां आठ दिवस
अगाउ गयो हतो ने उत्सवनी तैयारीमां उत्साहथी भाग लीधो हतो. बोटादमां चारेकोर
आनंद ने उत्साहनुं साम्राज्य हतुं, ने गुरुदेवना प्रतापे तेमां नवी चेतना प्रगटी हती. आठ
दिवस माटे तो बोटाद जाणे धर्मनगरी बनी गयुं हतुं. गुरुदेवना प्रवचनो कायरने पण नवी
चेतना आपी शूरवीरता प्रगटावता. भारतभरमांथी गामेगामना मुमुक्षुओ आव्या हता. आ
“एवा ए कळिकाळमां जगतनां कंई पुण्य बाकी हतां,
जिज्ञासु हृदयो हतां तलसतां सद्वस्तुने भेटवा.”
–एवा काळमां गुरुदेवनो अवतार थयो ने आपणने सत्य धर्म देखाडयो. एवा
गुरुदेवनी जन्मजयंति आनंदथी उजवी. –जयजिनेन्द्र
* राजकोटथी मुकेशभाई (स. नं. १७६प) बालविभागना सभ्यने लखे
छे–– प्रिय धर्मबंधु! आ वर्षे रजाना दिवसो घणा आनंदथी पसार थई रह्या छे...केमके पू.
गुरुदेव अत्रे राजकोटमां बिराजी रह्या छे तेथी हर्षनो पार नथी. तेमनी अमृतवाणीनो
सवार–बपोर ने रात्रे आनंदथी लाभ लईए छीए. बे वखत शिक्षणवर्ग पण चाले छे.
सवारमां भगवानना दर्शन–पूजा करीने गुरुदेवनी वाणीनो लाभ लईए छीए. आखो
दिवस आनंदथी पसार थई जाय छे. शिक्षणवर्गमां आपणा बालविभागना घणाय मित्रो
आव्या छे, तेमने मळीने पण आनंद थाय छे. भाई, तुं पण अनुकूळता मेळवीने जरूर अहीं
आवजे. साथे तारा कुटुंबीजनोने पण तेडी लावजे. तने मळीने मने पण आनंद थशे. अहींनुं
जिनमंदिर घणुं भव्य अने जोवालायक छे. मूळनायक सीमंधरभगवानना दर्शन करतां अनेरो
आनंद थाय छे. मानस्तंभ तेमज जिनेन्द्रभगवाननी धर्मसभा (समवसरण) नी पण भव्य
रचना छे,–जेनां दर्शनथी आनंद थाय छे. तो जरूर आवजे. –जयजिनेन्द्र
* जसदणना किशोर जैन (नं. ८९०) लखे छे––प्रिय मित्रो, अमारे त्यां
वर्द्धमान भगवाननुं मंदिर बंधायुं ने गुरुदेवना प्रभावथी प्रतिष्ठा उत्सव थयो. रोज
आनंदथी दर्शन करीए छीए. ने आत्मसिद्धि–प्रवचनो वंचाय छे, तेमां पण आनंद थाय छे.
तमारे त्यां पण जिनमंदिर हशे ने शास्त्रनुं वांचन करता हशो. –जयजिनेन्द्र
(बाकीना पत्रो आवता अंके)
जिनवरना सन्तानो, रात्रिभोजननो सदंतर त्याग करो.