Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
(लेखांक : प२)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
–– * ––
शास्त्रोमां मुनिने दिगंबरदशा ज होवानुं तथा ऊंची जाति अने पुरुषलिंग ज
होवानुं कह्युं छे–ते कथन उपरथी कोई जीव ते बाह्यचिह्नोने ज मोक्षना कारण तरीके
मानी ल्ये ने अंतरंगना खरा साधनने भूली जाय–तो ते पण परम पदने पामता नथी
–एम हवे ८९ मी गाथामां कहे छे–
जातिलिंगविकल्पेन येषां च समयाग्रहः।
तेऽपि न प्राप्नुवन्त्येव परमं पदमात्मनः।।८९।।
आ गाथानो कोई एवो ऊलटो अर्थ समजे के जाति–लिंगना भेदनो आग्रह न
करवो एटले के गमे ते जातिमां ने गमे ते लिंगमां मोक्ष मानी लेवो,–तो ए अर्थ
बराबर नथी. शास्त्रमां निमित्त तरीके जे जाति ने लिंग वगेरे कह्यां छे ते ज निमित्त
होय ने विपरीत न ज होय; पण ते निमित्तनो एटले के बाह्य साधननो आग्रह न
करवो पण अंतरना खरा साधनरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ओळखीने तेनी
उपासनामां तत्पर थवुं.
कई जातिमां ने कया वेषमां मोक्ष हशे एनो निर्णय पण घणाने थतो नथी, ने
गमे तेवा कुलिंगमां पण मोक्ष थई जवानुं माने छे–तेमने तो साचा मार्गनी खबर
नथी. मोक्षनुं साचुं साधन तो रत्नत्रय छे; ने ज्यां एवा रत्नत्रयरूप मोक्षसाधन होय
त्यां बाह्यसाधन तरीके उत्तम जाति अने दिगंबर पुरुषवेष ए ज होय; ए सिवाय
बीजुं माने तेने तो मोक्षना बहारना साधननीये खबर नथी, तो अंतरंग साचुं साधन
तो एने होय ज क््यांथी?
‘जाति वेषनो भेद नहि, कह्यो मार्ग जो होय’–एम श्रीमद्–राजचंद्रजीए कह्युं छे
ने?
एम कह्युं छे पण तेनो अर्थ एम न समजवो के गमे ते जातिमां ने गमे ते
वेषमां मुक्ति थई जाय. तेनो खरो अर्थ तो आम समजवो के ज्यां यथार्थ मोक्षमार्ग
होय त्यां जाति–वेषना भेदो न होय एटले के त्यां जे होय ते ज होय–बीजा भेद न
होय,